वैभव बेमेतरिहा, रायपुर. छत्तीसगढ़ में राजनेताओं और राजनीतिक दलों की जोर-शोर से चुनावी तैयारियाँ जारी है, लेकिन सवाल ये है कि कौन, किस पर कितना भारी है ? क्योंकि यहाँ प्रवक्ताओं पर बैन जारी है. जी हाँ प्रदेश की राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच इन दिनों जंग मीडिया में प्रतिबंधों को लेकर भी चल रहा है.
भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीतिक मुद्दों पर जुबानी जंग कुछ इस तरह चल पड़ते हैं कि बहस की दिशा बदल जाती है और जुबान से न जाने क्या-क्या बातें निकल जाती हैं ! और जब एक बार टीवी पर कोई बात निकल जाती है, तो वो बहुत दूर तक जाती है, न चाहते हुए भी विवाद कराती है, प्रतिबंध लगाती है.
मौजूदा समय में प्रतिबंध का ही यही खेल भाजपा और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय दल के बीच जारी है. कांग्रेस ने भाजपा के कुछ प्रवक्ताओं के साथ डिबेट में बैठना प्रतिबंधित किया, तो भाजपा ने भी कांग्रेस के कुछ प्रवक्ताओं को बैन कर दिया है.
वैसे सवाल तो यही है कि बैन से निकलेगा क्या ? किसको क्या ? मिलेगा क्या ? बैन तो विवादित बयानों पर लगना चाहिए ? जनता के समक्ष मुद्दों को रखते वक्त माननीयों को संयम रखना चाहिए . सार्वजनिक बहसों में निजी वार-पलटवार न हो, जुबान चले पर ध्यान रखें जुबान औजार न हो.
खैर एक सूचना यह भी महत्वपूर्ण है. प्रवक्ताओं पर पाबंदी हटना अभी दूर है ! क्योंकि पाबंदियों के बीच दोनों ही दलों की ओर से एक और पत्र जारी किया गया है. एक तरह से टीवी समाचार चैनलों को यह सूचना दिया गया है. चैलनों में कौन, कहाँ, किस मुद्दे पर जाएगा ? यह निर्णय अब पार्टी की ओर से ही लिया जाएगा. अभी तक चैनल की ओर से सीधे प्रवक्ताओं को आमंत्रित कर लिया जाता था, लेकिन अब वे ही चैलनों में बोलेंगे, जो पार्टी की ओर से भेजे जाएंगे, लेकिन सवाल तो यह है कि क्या इससे दोनों राष्ट्रीय दल के नेता चैनलों के बीच तालमेल बैठा पाएंगे ?
फिलहाल तो इस तरह का निर्णय अभी भाजपा और कांग्रेस की ओर से ही लिया गया है. दूसरे दलों को लेकर अभी ऐसी कोई स्थिति या कहे नीति नहीं है. हालांकि सवाल अब भी यहीं है कि प्रतिबंध का ही विकल्प क्या सही है ? क्या भाषायी मर्यादा खोने वाले नेताओं के लिए यह एक सीख है ? इस सवाल का जवाब समय पर छोड़ना ही ठीक है.
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