Rajasthan News: जयपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव ने शनिवार को राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर पीठ के परिसर में वर्ष- 2023 की द्वितीय राष्ट्रीय लोक अदालत का शुभारंभ किया.
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के तत्वावधान में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय लोक अदालत में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोक अदालतें कानूनी प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जहां महंगी एवं लंबी न्याय प्रक्रिया से अलग, आपसी सम्मान व समझ से विभिन्न प्रकरणों का शांतिपूर्ण व शीघ्र हल निकाला जाता है. उन्होंने कहा कि वर्ष- 2022 में लोक अदालत में नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए 45 लाख 72 हजार 315 प्रकरण निस्तारित किए गए. वहीं वर्ष- 2023 की पहली लोक अदालत में 3 लाख 47 हजार 579 प्रकरणों का निस्तारण किया गया.
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि लोक अदालत का आयोजन राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर एवं जयपुर पीठ सहित प्रदेश के सभी अधीनस्थ न्यायालयों, राजस्व न्यायालयों, उपभोक्ता मंचों एवं अन्य प्रशासनिक अधिकरणों में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से किया जा रहा है.
प्री- लिटिगेशन से विवादों को न्यायालय में आने से रोकना मुख्य उद्देश्य
राष्ट्रीय लोक अदालत के शुभारंभ अवसर पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोक अदालत के माध्यम से ऐसे विवादों को भी सुलझाने का प्रयास किया जाता है, जिनमें विवाद को यदि समय पर नहीं सुलझाया जाए तो वे सालों- साल न्यायिक प्रक्रिया में उलझ कर रहे जाते हैं. ऐसे प्रकरणों को प्री- लिटिगेशन के माध्यम से न्यायालय में आने से रोका जाता है और आपसी सामंजस्य व समझौते से मामले को निस्तारित किया जाता है. उन्होंने कहा कि मतभेद एवं मनभेद मिटाना और समाज में शांति कायम करना लोक अदालत का मुख्य उद्देश्य है.
लोक अदालत में जोड़े गए नए प्रकरण
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि लोक अदालतों में प्रस्तुत किए जाने वाले विभिन्न प्रकरणों के अलावा नए प्रकरणों को भी जोड़ा गया है. उन्होंने बताया कि न्यायालयों में आने वाले प्रकरणों में से लगभग एक तिहाई प्रकरण चेक बाउंस के आते हैं. ऐसे में लोक अदालत द्वारा बैंक के उच्चाधिकारियों से बात कर प्रकरण में सेटलमेंट या भुगतान करवा कर मामले को निपटाया जाता है.
उन्होंने बताया कि मोटर दुर्घटना के प्रकरणों में जिस परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य की मृत्यु हो जाती है या वो पंगु हो जाता है और मुकदमे के दौरान उस परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है, ऐसे प्रकरणों में मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए न्यायिक प्रक्रिया से पहले ही बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजा दिलाने का प्रयास किया जाता है. इसी प्रकार पारिवारिक न्यायालयों में लंबित प्रकरण बहुत ज्यादा हैं. पति-पत्नी के मनमुटाव का असर बच्चों के विकास पर पड़ता है. उन्होंने बताया कि ऐसे मुकदमों को सुलह के माध्यम से लोक अदालत में निपटाने का प्रयास किया जाता है.
उन्होंने कहा कि अधिवक्ताओं को भी पक्षकारों के बीच मध्यस्थता कराने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे मामले कोर्ट में ना उलझें और पहले ही सुलझा लिए जाएं. उल्लेखनीय है कि द्वितीय राष्ट्रीय लोक अदालत में प्रकरणों की सुनवाई के लिए अधीनस्थ न्यायालयों की कुल 517 बेंचों का गठन किया गया है. इन बेंचों में 5 लाख 75 हजार 844 प्री- लिटिगेशन प्रकरण तथा 3 लाख 44 हजार 889 न्यायालयों में लंबित प्रकरण, इस प्रकार कुल 9 लाख 20 हजार 733 प्रकरण सुनवाई के लिए रैफर किए गए हैं.
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