मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ अब बेरोजगारी मुक्त राज्य की ओर बढ़ रहा है. देश में सबसे कम बेरोजगार वाले राज्यों की सूची में अब छत्तीसगढ़ का नाम भी आने लगा है. सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी) आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018 की बात करें तो राज्य में बेरोजगारी दर का आंकड़ा 22.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था. ठीक चुनाव से पहले सितंबर 2018 में यह आंकड़ा 22.2 प्रतिशत था. लेकिन जब दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने जिम्मेदारी संभाली तो इन आंकड़ों में धीरे-धीरे कमी आती गई.

वर्ष 2023 की बात करें तो जनवरी में यह आंकड़ा 05, फरवरी और मार्च माह में यह आंकड़ा 0.8 पर बना हुआ है. तब और अब में अंतर साफ है. कोरोना काल के दौरान भी जब देशभर में बेरोजगारी के आंकड़े बढ़ते जा रहे थे, तो यहां सरकार ने अपनी योजनाओं के जरिए इस पर नियंत्रण बनाए रखा था. आज स्थिति ये है कि छत्तीसगढ़ की बेरोजगारी दर देशभर में अर्थशास्त्रियों के लिए अध्ययन का विषय बनी हुई है.

रोजगारी दर पर अंकुश को लेकर जब छत्तीसगढ़ की बात होती तो सीएम भूपेश की उन तमाम योजनाओं और फैसलों का जिक्र होता है जो सीधे लोगों की जेब में पैसा पहुंचाने से जुड़ी है. समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना, गोधन न्याय योजना, मिलेट्स की समर्थन मूल्य में खरीदी, लघु वनोपज समर्थन मूल्य में खरीदी, तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक में बढ़ोतरी से लेकर डीएमएफ फंड को बुनियादी जरूरतें और आजीविका आधारित अधोसंरचनाओं में खर्च वाले फैसलों का होता है. इन योजनाओं के जरिए राज्य में हर वर्ग को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया. इनके जरिए ग्रामीण कारोबार और स्वरोजगार के अवसर पाए गए. जिससे बेरोजगारी दर कम करने में काफी मदद मिली.

रोजगार नीति से पड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव

सुराजी ग्राम योजना के नरवा-घुरुवा-बारी कार्यक्रम के तहत गौठान बनाए गए, जिन्हें बाद में ग्रामीण औद्योगिक पार्क में बदला गया. परंपरागत कारोबार की अब सुविधाएं बढ़ गई. ये ग्रामीण अर्थव्यवस्थ की सबसे बड़ी नींव कहलाई, जिनके जरिए सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर दिए गए. इसके अलावा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत रोजगार के 100 दिवस की व्यवस्था को निश्चित किया गया और ज्यादा से ज्यादा जॉब कार्ड बनाए गए.

घटते क्रम में बेरोजगारी दर

इनसे गांवों में निश्चित रोजगार मिलने लगा. वनाधिकार पत्र के जरिए अनुसूचित जनजाति अन्य परंपरागत वनवासियों को संसाधन उपलब्ध करवाए गए. औद्योगिक नीतियों में बदलाव किया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा उद्योग स्थापित किए जा सकें. शिक्षा के क्षेत्र में नए स्कूल-कॉलेजों की शुरुआत से बड़े पैमाने पर रोजगार मिला. विभागों, निगम-मंडलों, आयोगों, समितियों आदि में निर्धारित व्यवस्था और व्यापम और लोक सेवा आयोग के जरिए मिलने वाली नौकरी के लिए पारदर्शी व्यवस्था बनकर समय पर परीक्षाएं करवाई गई. ताकि नौकरियां निरंतर मिलती रहे. इन तमाम प्रयासों का असर ही बेरोजगारी के आंकड़ों को धीरे-धीरे कम करता गया.