रवि शुक्ला,मुंगेली- “जहां चाह – वहां राह” इस कहावत को सही साबित किया है मुंगेली विधानसभा के बांकी गांव में रहने वाले युवक बलराज सिंह ने,जिन्होनें अपने जुनून और सरकारी योजनाओं की मदद से कृषि क्षेत्र में ऐसे-ऐसे नवाचार किये कि वे आसपास के किसानों के लिये एक मिसाल बन गये हैं. पेशे से सरकारी शिक्षक बलराज सिंह अपने शैक्षणिक कार्य से बचे हुए समय का सदुपयोग कृषि कार्यों में करते हैं,जिसके परिणाम चौंकाने वाले हैं.आज इस पार्ट टाइम जॉब से बलराज सिंह की सालाना कमाई 10 से 15 लाख रुपये तक हो जाती है.इतना ही नहीं इनके काम में सहयोग करने वाले दर्जन भर कृषि श्रमिकों और उनके परिवार जनों को करीब-करीब साल भर रोजगार मिल जाता है,जिससे इन कृषि श्रमिक परिवारों के जीवनस्तर में भी बेहतरीन सुधार आ गया है.

ऐसे शुरु हुआ सफर तरक्की का…

वैसे तो कृषक परिवार में पैदा होने के कारण बलराज सिंह की बचपन से ही कृषि में रूचि थी और वे अपने बड़े भाई शिवप्रताप सिंह के कृषि कार्य में हमेशा हाथ बंटाते थे.उन दिनों खरीफ फसल में धान और रबी फसल में चना-गेहूं जैसे परंपरागत खेती ही की जाती थी,लेकिन सिंचाई के साधनों और दूसरी सुविधाओं की कमीं के चलते पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाता था.1993 में 12 वीं की परीक्षा पास करने के बाद से उनके पिता प्रेम सिंह की इच्छा थी कि वह उच्च शिक्षा हासिल कर राज्य प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे,लेकिन पढ़ाई-लिखाई के दौरान बलराज सिंह को ग्रामीण जनजीवन में गहरी रुचि हो गई थी और उन्होंने उसी समय ये तय कर लिया था कि गांव में ही रहकर उन्हें जीवनयापन के आधुनिक तरीके अख्तियार करना है और आधुनिक कृषि से बेहतर तरीका कोई और नहीं हो सकता.हालांकि पिता जी और परिवार के बड़े लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए बलराज ने मुंगेली में एम.ए.तक की पढ़ाई की.

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही बलराज सिंह ने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सघन संपर्क बनाना शुरु किया और सरकारी योजनाओं से मिलने वाले फायदों की लगातार जानकारी लेते रहे.इसी दौरान 1998 में बलराज सिंह को बांकी गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षाकर्मी की नौकरी मिल गई.उस समय शिक्षाकर्मी का वेतन मात्र पांच सौ रुपये मासिक होता था,जो कि बलराज जैसे जुनूनी युवा के लिये बहुत कम था. इसी समय से बलराज ने स्कूल में पढ़ाने के बाद बचे हुए समय में अपने परिवार के कृषि कार्य में सहयोग करना जारी रखा. इस दौरान उसने कृषि के क्षेत्र में थोड़ी बहुत नवाचार की शुरुआत की.

परत(बंजर) जमीन को बना दिया स्वर्ग…

लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में बलराज सिंह ने बताया कि पैतृक कृषि जमीन में कृषि में नवाचार की उसकी इच्छा अधूरी रह जाती थी, क्योंकि वहां पर निर्णय लेने का अधिकार पिता और बड़े भाईयों का होता था.ऐसे में अपने पसंद के मुताबिक खेती करने के लिये उसने रेगहा(किराये में खेत लेने की पद्धति) में खेती लेने की ठानी. ये बात 2005 की है,जब बांकी के पड़ोस में सोनपुरी गांव में महज 1000 रुपये प्रति एकड़ वार्षिक के दर से रेगहा में खेत उपलब्ध होने की जानकारी बलराज को मिली.इतने सस्ते में ये जमीन इसलिये दी जा रही थी कि यहां पर सिंचाई के साधन का सर्वथा अभाव था और सालों से खेती नहीं होने के कारण यह जमीन बंजर जमीन की श्रेणी में आती थी. लेकिन आधुनिक खेती करने का भूत बलराज पर ऐसा सवार था कि उसने इस बंजर जमीन पर खेती को ही अपना मिशन बना लिया.उसने पहले 7 एकड़ जमीन को किराये में लेकर आधुनिक खेती की नींव रखी.

बलराज ने सबसे पहले कृषि विस्तार अधिकारी की सलाह पर मृदा परीक्षण कराया और जमीन में एनपीपी के अनुपात को सही करने के लिये समुचित खादों का उपयोग किया.निदानाशक का प्रयोग कर खेत की गहरी जुताई कराई.राज्य शासन की योजनाओं का लाभ लेते हुए जिला एवं केन्द्रीय सहकारी बैंक से लोन लेकर एक ट्यूबवेल लगवाया.इस तरह से शुरुआती दो साल में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण करते हुए सोयाबीन के साथ साथ धान की खेती शुरु की.इसमें होने वाली शुरुआती कमाई को खर्च किये बिना बलराज ने आधारभूत संरचनाओं के विकास पर लगातार ध्यान दिया.शुरुआती नतीजों से उत्साहित बलराज सिंह ने साल दर साल किराये की खेती का रकबा बढ़ाना शुरु किया और पिछले 13 सालों में उसकी खेती का रकबा 7 एकड़ से बढ़कर आज करीब पचास एकड़ तक पहुंच गया है.

आज बलराज के पास अपनी खुद की ट्रैक्टर है.ट्यूबवेल की खंख्या सात तक पहुंच चुकी है.कृषि में साल दर साल बढ़ रही आमदनी ने उसकी आर्थिक स्थिति को इतना मजबूत बना दिया है कि पिछले साल उसने 11 लाख रुपये की एक महंगी कार भी खरीद ली है. बलराज सिंह ने अपनी आर्थिक उन्नति का श्रेय रमन सरकार और उसकी किसान हितैषी योजनाओं को दिया है.बलराज ने खास तौर पर शून्य फीसदी ब्याज पर कृषि ऋण,किसानों के लिये मुफ्त बिजली योजना,सौर सुजला योजना,समर्थन मूल्य पर धान खरीदी,धान पर तीन सौ रुपये का बोनस देने का प्रावधान,कृषि यंत्रों में सरकारी सब्सिडी जैसी योजनाओं को किसानों के लिये वरदान बताया है.

अब गन्ना उत्पादन पर फोकस

अपने द्वारा किये गये नवाचार और इसके उत्साहजनक परिणाम ने बलराज के उत्साह को दोगुना कर दिया है.पिछले दो सालों से वह अब गन्ना की खेती करना शुरु किया है.पहले साल प्रयोग के तौर पर उसने पांच एकड़ खेत में गन्ना लगाया और इस पांच एकड़ में करीब एक लाख रुपये  प्रति एकड़ की औसत से आमदनी पाया.इस नतीजे से आश्चर्यचकित होकर बलराज ने इस साल करीब 20 एकड़ खेत में गन्ने की खेती शुरु की है.पड़ोसी जिले में दो-दो शक्कर कारखानों की स्थापना ने बलराज को इस दिशा में प्रेरित किया और उसने गन्ने की खेती पर फोकस कर दिया है.आज खेती में लगातार बढ़ रहे उत्पादन और कमाई ने न सिर्फ बलराज सिंह को आर्थिक रुप से मजबूत बनाया है,बल्कि उसके खेत में काम करने वाले दर्जन भर मजदूरों को भी लगातार रोजगार मिल रहा है.कभी काम की तलाश में दूसरे राज्यों को पलायन करने वाले ये मजदूर अब बलराज सिंह के साथ स्थायी रुप से कृषि कार्य में लगे हुए हैं.बलराज सिंह की सफलता से प्रेरित होकर न सिर्फ बांकी गांव के युवा बल्कि पड़ोसी गांव के युवा भी कृषि की ओर आकर्षित हो रहें हैं और बलराज द्वारा की जा रही आधुनिक खेती को देखने और सीखने के लिये आने लगे हैं.

राज्य स्तरीय कृषक सम्मान से मिली खुशी

अभी कुछ ही दिनों पहले कृषि के क्षेत्र में नवाचार के लिये राज्य शासन ने बलराज सिंह सहित राज्य भर के 180 किसानों को राज्य स्तरीय कृषक सम्मान से नवाजा है.राज्य सरकार के इस सम्मान को हासिल करने के बाद बलराज सिंह के हौसले को एक नई उड़ान मिली है.

बलराज सिंह ने कहा कि इस पुरस्कार से उन्हें,परिवार जनों और गांव वालों को बेहद खुशी हुई है.बलराज सिंह का सपना है कि वह किसानों की आमदनी दोगुनी करने के मोदी सरकार के प्रयासों में अपनी सहभागिता निभा सके और कृषि के क्षेत्र में और मेहनत कर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार हासिल कर सकें.