पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद. किडनी पीड़ित गांव के प्रति सरकारी संवेदनाएं फाइलों तक सीमित रह गई हैं. किडनी रोग से मां बाप को खो चुके परिवार के सदस्य आज भी किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं. उपर से इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे 3 भाइयों को एम्स के प्रिसिक्रिप्शन के 13 दिन बाद भी दवा नहीं मिली. जिसकी वजह से छोटा भाई गांव छोड़कर भाग गया. मंझला दवा के लिए पीएचसी और सीएचसी का चक्कर लगा रहा है. वहीं पीड़ित दर्द से निजात पाने के लिए पैरासिटामॉल का सहारा ले रहा है. पीड़ित का कहना है कि अगर उसकी मौत हुई तो इसका जिम्मेदार प्रशासन होगा. यहां 47 मरीजों की पहचान हुई है. एक डायलिसिस पेशेंट को छोड़कर बाकी सब भगवान भरोसे हैं.
देवभोग सीएचसी पहुंच दवा के लिए बीएमओ के पास गिड़गिड़ा रहे 42 वर्षीय जीवन अडील ने सुपेबेड़ा के किडनी रोगियों के प्रति दिखाई जाने वाली सरकारी संवेदनशीलता की पोल खोल दी है. जीवन ने बताया कि उसका क्रियेटीन लेवल 5.39 है. बड़ा भाई लैबानो राम का 4.9 और छोटे भाई हेजु राम का लेवल 2.3 है. 13 दिन पहले तीनों एम्स रायपुर से नेफ्रोलॉजिस्ट से चेकअप के बाद प्रिस्क्रीप्शन लेटर लेकर लौट आए. उन्हें बताया गया था कि दवा गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ही उपलब्ध हो जाएगी. लेकिन आज जीवन 13 दिनों से प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का चक्कर लगा रहा है. घुटने में सूजन और कंधे के हड्डी के असहनीय दर्द से बचने के लिए वो पैरासिमाल ले रहा है. यहां के डॉक्टर लिखे गए दवा के बजाए दूसरी दवा खाने का दबाव बना रहे हैं. जबकि एम्स के नेफ्रो विनय राठौर से सलाह लेने पर वे लिखी गई दवा खाने बोल रहे हैं. जीवन ने कहा कि दूसरी दवा ट्राय भी किया. लेकिन गैस उल्टी और अन्य परेशानी शुरू हो गई है. आज बीएमओ सुनील रेड्डी के सामने जीवन अपनी पीड़ा को बताते हुए यहां तक कह दिया है कि अगर मेरी मौत हुई तो इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी.
किडनी की बिमारी से माता-पिता की मौत
जीवन ने बताया कि पिता मंगनिया की मौत 2017 में और माता चंद्रा बाई की मौत 2018 में हो गई. दोनों किडनी की बीमारी से पीड़ित थे. अब ये तीनों भाई दवा का इंतजार करते थक चुके हैं. छोटा भाई तो बगैर दवा लिए आज आंध्र प्रदेश भाग गया।बोला मजदूरी के बाद पैसे मिले तो वही अपना इलाज कराएगा.
गांव में 47 किडनी रोगी और इलाज केवल 1 का
सुपेबेड़ा में अब तक किडनी की बीमारी से 108 लोगों की मौत हो चुकी है. मई महीने में हुई जांच में 10 नए मरीजों की पुष्टि हुई है. इस 10 के साथ वर्तमान में किडनी पीड़ित को संख्या 47 है. सामान्य लोगों में क्रिएटीन लेबल 0.15 से 1.15 रहता हैं. यहां पाए गए पॉजिटिव लोगों में इसका लेबल 2.3 से 6.9 तक पाया गया है. इनमें से एक मरीज प्रेमजय क्षेत्रपाल का पेरिटोनियल पद्धति से घर में ही इलाज जारी है. बाकी के दवा और इलाज का अब तक अता पता नहीं है. सुपेबेड़ा के युवक त्रिलोचन की नियुक्ति सरकार ने किडनी रोगियों से समन्वय बनाने के लिए किया है. त्रिलोचन ने बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद एक शिविर इनकी जांच के लिए लगाया जाना है. इसी शिविर में नेफ्रोलॉजिस्ट द्वारा लेवल के अनुपात में दवा प्रिस्क्राइब करेंगे. इस जांच में विलंब हुआ है. पूर्व में पॉजिटिव पाए गए पीड़ितो को भी दवा दिया जाना है. विलंब के चलते कई लोग ओड़िशा, आंध्रा के अलावा देशी इलाज करवाने में जुट गए हैं.
ये कैसी व्यवस्था, इलाज के बाद कागजी कार्रवाई ?
पहले बल्ड सैंपल फिर इसकी रिपोर्ट भेजी जाती है. इसके बाद पॉजिटिव लोगों को या तो एम्स बुलाया जाता है, या एम्स के डॉक्टर गांव में शिविर लगाकर दवा की पर्ची लिखते हैं. फिर इसी पर्ची के आधार पर बीएमओ की बनाई सूची को मांग पत्र बनाकर सीएमएचओ द्वारा एम्स भेजा जाता है. फाइल जल्दी चली तो 3 से 4 दिनों के भीतर दवा आ जाती है. लेकिन जिले के अफसर रुचि नहीं लिए तो दवा मिलने में महीनों लग जाता है. सीएमएचओ दफ्तर की रुचि के अभाव में सुपेबेड़ा में अभी भी कई मरीज ऐसे हैं जिनकी जांच के बाद केवल एक बार ही दवा मिली है, या तो सरकारी दवा मिला ही नहीं है.
दवा आने में अभी लगेगा और समय
मामले में सीएमएचओ से जानकारी लेने के लिए उनसे संपर्क किया गया. लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. बीएमओ सुनील रेड्डी ने कहा कि मांग पत्र जिले को भेज दिया गया है. आते ही वितरण किया जाएगा. वहीं सीएमएचओ दफ्तर के स्टोर इंचार्ज कमलेश चक्रधारी ने बताया कि वो अभी एम्स में हैं. डायलसिस पेशेंट प्रेमजय की दवा लेने आया हूं. अन्य मरीजों की दवा की डिमांड भी कर दी गई है. कागजी प्रक्रिया में लेट के कारण दवा मिलने में दो तीन दिन लगेगा.