बड़े नसीब वाले होते हैं वो लोग जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब होती है.’ ये कहावत आपके अक्सर अपने घर परिवार में, अपने बड़े बुजुर्गों से सुनी होगी. आज 2 जून है यानी आज का ही वो दिन है. जब देश में लाखों लोगों को दो वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता है.
2015-16 में जो 10 भारत के सबसे गरीब राज्यों में शामिल थे. उनमें से 2019/21 में सिर्फ पश्चिम बंगाल ही इस सूची से बाहर निकल पाने में सफल हुआ है. बाकी 9 राज्य अभी भी सबसे निर्धन राज्यों में बने हुए हैं. जिसमें बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं.
कहावत का ये है मतलब
2 जून की रोटी एक कहावत है और इसका मतलब 2 वक्त के खाने से होता है. अवधि भाषा में जून का मतलब वक्त अर्थात समय से होता है. इसलिए पूर्व में लोग इस कहावत का इस्तेमाल दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर करते थे. इससे उनका मानना था कि गरीबी में 2 वक्त का खाना भी मिल जाए. वहीं काफी होता है. देखा जाए तो जीवन की सबसे बड़ी जद्दोजहद पेट पालने की ही है. पेट की भूख को शांत रखने के लिए ही इंसान रात-दिन मेहनत करता है. हमारे देश में जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा भीषण गरीबी में अपना जीवन बिता रहा है, उनके लिए दिन में 2 बार भर पेट भोजन करना वाकई मुश्किल है.
लाखों को नहीं मिलती 2 जून की रोटी
इसीलिए कहा जाता है कि दिन में 2 बार भरपेट खाना मिलना नसीब की बात है. बड़ी मेहनत से रोटी कमाई जाती है ताकि परिवार 2 जून रोटी तो भरपेट खा सके. सरकारें कई दशकों से गरीबी हटाने की योजनाएं लेकर आ रही है. मगर आज भी लाखों लोग हमारे देश में ऐसे हैं, जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब नहीं है.
ये कहते हैं आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2017 के अनुसार, देश में 19 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं है. हालांकि, कोरोना महामारी के समय से ही गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे लोगों को सरकार मुफ्त राशन मुहैया करा रही है, ताकि उनकी पेट भरने की मौलिक जरूरत पूरी हो सके. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट 2022 के अनुसार पिछले 15 सालों में 41.5 करोड़ (415 मिलियन) लोग गरीबी के चंगुल से बाहर निकले हैं. रिपोर्ट 2005-06 से 2019-21 तक गरीबी उन्मूलन की दिशा में ऐतिहासिक बदलाव हुआ है और यहां गरीबों की संख्या में 41.5 करोड़ की कमी हुई है.
23 करोड़ लोग अभी भी गरीबी के दायरे में
UN ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने गरीबी उन्मूलन में कामयाबी पाई है लेकिन अभी लगभग 23 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकलना चुनौतीपूर्ण टास्क बना हुआ है. क्योंकि 2019/21 में जब ये आंकड़े जुटाए गए थे तब से निश्चित रूप से गरीबों की संख्या बढ़ी होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कुछ इलाकों में राष्ट्रीय औसत से तेज दर से गरीबी में कमी आई है. लेकिन ये इलाके पहले अपने देश में सबसे निर्धन राज्यों में थे. रिपोर्ट के अनुसार बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां गरीबी में तेजी से गिरावट आई है.
ऐसा है गरीबी उन्मूलन का डाटा
रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2005/06 से लेकर 2015/16 तक गरीबी से 275 मिलियन यानी कि 27.5 करोड़ लोग बाहर आए, जबकि 2015/16 से लेकर 2019/21 तक 140 मिलियन यानी कि 14 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए. रिपोर्ट कहता है कि भारत की प्रगति ये बताती है कि बड़े पैमाने पर भी गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य संभव है.
16.4 फीसदी आबादी अभी भी गरीब
रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोरोना का गरीबी पर क्या असर हुआ है इसका आकलन करना मुश्किल है, क्योंकि 71 फीसदी डाटा 2019/21 से पहले ही ले लिया गया था. 2019-21 का आंकड़ा बताता है कि भारत की आबादी का 16.4 फीसदी गरीबी में रहती है. देश की जनसंख्या का 4.2 प्रतिशत लोग बेहद निर्धनता की हालत में रहते हैं.
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