रायपुर। बहरापन भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार भारत में 63 मिलियन लोग गंभीर रूप से सुनने की अक्षमता से पीड़ित हैं। इसके अलावा एक सर्वे से पता चला है कि देश में हर 1000 बच्चों में से चार बच्चे गंभीर रूप से सुनने की समस्या से पीड़ित हैं। जन्म से सुनने और बोलने में सक्षम न होना एक गंभीर समस्या है। इसका असर आजीवन रह सकता है। यदि अभिभावक इसको लेकर शुरुआती समय में सावधान रहें तो बच्चों को इस समस्या से बचाया जा सकता है।

मासूमों में बोलने और सुनने की समस्या का सफल उपचार काक्लियर इम्प्लांट सर्जरी से संभव है। सरकार भी इसके लिए योजना चला रही है। इसमें 10 हजार से लेकर छह लाख तक की मदद मिलेगी। अगर आपकी जानकारी में कोई भी ऐसा बच्चा व व्यस्क दिव्यांग है, जो मूक बधिर हैं। इस आवेदन के बाद सर्जरी के लिए 10 हजार से छह लाख रूपए तक सरकारी मदद उपलब्ध होगी।

ऐसे बच्चों की करेक्टिव के लिए 10 हजार रूपये, मूक बधिर बच्चों की काक्लियर इम्प्लान्ट सर्जरी के लिए छह लाख रुपये की धनराशि दी जाती है। ऐसे दिव्यांगजनों के अभिभावक सर्जरी कराने के लिये बच्चे का दिव्यांग प्रमाण पत्र, आधार कार्ड एवं फोटो के साथ अपना प्रार्थना पत्र अपने समीप के किसी भी सरकारी

प्राथमिक विद्यालय, आंगनबाड़ी केन्द्र, मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय व विकास भवन स्थित जिला दिव्यांगजन सशक्तीकरण कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं।

जन्मजात रूप से बधिर बच्चे की 3 साल की उम्र से पहले कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी होनी चाहिए, यदि संभव हो तो इससे पहले। यह प्रारंभिक आरोपण आपके बच्चे को भाषा कौशल विकसित होने के दौरान ध्वनि का उपयोग करना सीखने का सबसे अच्छा मौका देता है।