Devshayani Ekadashi 2023. चतुर्मास जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है. देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं. देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के चार माह के बाद भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी (देवउठनी) के दिन जागतें हैं. देवशयनी एकादशी से चार माह के लिए विवाह संस्कार बंद हो जाएंगे. आज से देव सो जाएंगे.

पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति देवशयनी और देव प्रबोधनी एकादशी का व्रत रखता है, वह भगवान विष्णु की परम कृपा से उत्तम लोकों में स्थान प्राप्त करता है. एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है. स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शुभ रहता है. इसके अतिरिक्त स्नान के लिये तिल के लेप का प्रयोग भी किया जा सकता है. स्नान करने के बाद कुम्भ स्थापना की जाती है, कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी कि प्रतिमा रखकर धूप, दीप से पूजन किया जाता है. व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.

देवशयनी एकादशी व्रत विधि

एकादशी को प्रातःकाल उठें. इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं. स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें. घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या पीतल की मूर्ति की स्थापना करें. तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें. इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें. तत्पश्चात व्रत कथा सुनें. इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें. अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए. व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करें. इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करें तो महाफल प्राप्त होता है.

एकादशी (Devshayani Ekadashi) व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें. हो सके तो जमीन पर ही सोएं. इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिये और सात्विक जीवन जीना चाहिये.

एकादशी व्रत पूजन सामग्री –

  • श्री विष्णु जी की मूर्ति
  • वस्त्र
  • पुष्प
  • पुष्पमाला
  • नारियल
  • सुपारी
  • अन्य
  • ऋतुफल
  • धूप
  • दीप
  • घी
  • पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण)
  • अक्षत
  • तुलसी दल
  • चंदन
  • मिष्ठान

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