नई दिल्ली . उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई वकील घर में अपना कार्यालय चलाता है तो दिल्ली निगम उस मकान पर व्यावसायिक भवन के रूप में संपत्तिकर नहीं वसूल सकता. अदालत ने कहा कि वकीलों की पेशेवर गतिविधि को व्यावसायिक गतिविधि नहीं माना जाना चाहिए, और इसलिए, दिल्ली नगर निगम अधिनियम आवासीय परिसर से संचालित ऐसी गतिविधियों पर कर लगाने का अधिकार नहीं देता है.
जस्टिस नज्मी वजीरी और सुधीर कुमार जैन की पीठ ने फैसले में कहा कि वकीलों के पेशे से जुड़ी गतिविधियों को ‘वाणिज्यिक गतिविधियों’ के रूप में नहीं देखा जा सकता. ऐसे में आवासीय परिसर में चलने वाला वकील का कार्यालय दिल्ली नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों के तहत व्यावसायिक भवन के रूप में संपत्तिकर के अधीन नहीं आता है.
मास्टर प्लान गतिविधियां चलाने की अनुमति देता है पीठ ने कहा कि दिल्ली का मास्टर प्लान (एमपीडी) 2021 कुछ शर्तों के साथ आवासीय भवनों में पेशेवर (प्रोफेशनल) गतिविधियां चलाने की अनुमति देता है. हालांकि पीठ ने साफ किया है कि मास्टर प्लान का उक्त प्रावधान, दिल्ली निगम को आवासीय भवनों से की जा रही पेशेवर गतिविधियों के लिए आवासीय मकान से वाणिज्यिक संपत्तिकर लगाने का अधिकार नहीं देता है.
उच्च न्यायालय ने एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दाखिल दिल्ली निगम की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया. एकल पीठ ने फैसले में कहा था कि अधिवक्ताओं द्वारा दी जाने वाली सेवाएं पेशेवर गतिविधियां हैं, इसलिए उन्हें व्यापारिक प्रतिष्ठान के रूप में वर्गीकृत या श्रेणी के तहत कर के अधीन नहीं किया जा सकता है. उच्च न्यायालय के इस फैसले से दिल्ली के हजारों वकीलों को बढ़ी रहत मिली है.
अधिवक्ता ने दाखिल की थी याचिका
दिल्ली निगम ने 2013 में अधिवक्ता बी.एन. मैगन को नोटिस जारी कर संपत्तिकर की मांग की थी क्योंकि वह अपने घर से ही दफ्तर चला रहे थे. अधिवक्ता ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी. उच्च न्यायालय के एकल पीठ ने अधिवक्ता के हक में फैसला सुनाया था.