हकीमुद्दीन नासिर, महासमुंद. ‘स्कूल आ पढ़े बर, जिनगी ला गढ़े बर’ ऐसे स्लोगनो से शिक्षा विभाग शिक्षा की अलख जगाने का दम भरता है. लेकिन बच्चों को जब स्कूल भवन ही नसीब न हो तो भला ये बच्चे आखिर अपनी जिंदगी कैसे गढ़ेंगे? आज हम आपको एक ऐसे ही स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं जहां तीन-तीन कक्षाओं के विद्यार्थियों को एक साथ बैठाकर अलग-अलग कक्षाओं की पढ़ाई कराई जा रही है.
एक तरफ शासकीय उच्च प्राथमिक शाला खरोरा का भवन है और दूसरी तरफ धीवर समाज का सामाजिक भवन. ये दोनों शिक्षा विभाग की जमीनी हकीकत बयां कर रहे हैं. शासकीय उच्च प्राथमिक शाला खरोरा का भवन वर्ष 2006 में बना था. जो वर्तमान मे जर्जर हो चुका है. भवन की छत गायब है, जमीन पर मलबा भिखरा हुआ है. ये आज की स्थिति है. पर पिछले दो-तीन साल से छात्र-छात्राएं इसी जर्जर भवन में बरसात के समय टपकते पानी के नीचे पढ़ने को मजबूर थे.
वही रटा-रटाया जवाब…
अभी वर्तमान में इस स्कूल में 6वीं, 7वीं और 8वीं के 98 बच्चे पढ़ाई करते हैं. इस साल शिक्षा सत्र शुरु होने से दो दिन पहले इस जर्जर भवन की छत गिरा दी गई और स्कूल को धीवर समाज के भवन में शिफ्ट कर दिया गया. बच्चो को अब एक ही कमरे में तीन-तीन कक्षाओं की पढाई करनी पड़ रही है. स्कूल के बच्चे और शिक्षक दोनों का कहना है कि एक ही कमरे में तीनों कक्षाओं की पढ़ाई नहीं हो पा रही है. ऐसा नही है कि शिक्षा विभाग इन सब बातो से अनजान है, लेकिन विभाग के आला अधिकारियों के पास इस सवाल का एक ही रटा-रटाया जवाब है कि जल्द ही समस्या से बच्चों को निजात मिल जाएगी.
शासन के काम पर पलीता लगा रहे अधिकारी
बता दें कि ये जिले का कोई इकलौता स्कूल नहीं है जिसका भवन जर्जर है. जिले में ऐसे 531 स्कूल हैं जिसका भवन जर्जर है. शासन ने इसे रिपेयर करने के लिए तीन किस्तो में 12.72 करोड़ रुपये की स्वीकृत दी है. जिसे शिक्षा सत्र शुरु होने से पहले सभी स्कूलो की मरम्मत कर लेनी थी. लेकिन लापरवाही के कारण आज बच्चों को ये परेशानियां झेलनी पड़ रही है. बहरहाल देखना होगा कि शिक्षा विभाग आखिर कब तक भवनों की मरम्मत करा पाता है और बच्चो की पढ़ाई सुचारु रुप से हो पाती है.
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