Doctor’s Day : पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद. स्वास्थ्य सुविधा के अभाव के बीच कुछ डॉक्टर ऐसे भी है जिनकी सेवा और समर्पण मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है. शायद इसलिए लोग इन्हें धरती का भगवान कहते हैं. समय के साथ देवभोग सीएचसी को सरकार ने सिविल अस्पताल का दर्जा दे तो दिया, लेकिन इस दर्जे के अनुकूल दो साल में भी सुविधाएं नहीं बढ़ाई गई है. 50 से ज्यादा बिस्तर और कम से कम 10 डॉक्टर रहने थे, पर ये दोनों ही चीजे नदारद हैं. लेकिन भारी अभाव के बीच कुछ मौका परस्त लोग इसमें भी अपना फायदा ढूंढने लगे, तो कुछ ऐसे मेहनती डॉक्टर भी निकले जिनके सेवा और समर्पण भाव को देखते हुए लोगों ने उन्हें धरती के भगवान का दर्जा दे डाला. आज डॉक्टर्स डे (Doctor’s Day) पर हम आपकों इन्हीं समर्पत डॉक्टरों के बारे में बताने जा रहे हैं.

डॉक्टर सुनील रेड्डी… ये नाम इस अंचल के लिए एक जाना पहचाना नाम बन गया है. डॉक्टर रेड्डी ने अपनी पूरी शिक्षा रायपुर से ली. 2016 में डॉक्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुनील रायपुर एम्स में सेवा दे रहे थे. पिता सुदामा रेड्डी 30 वर्षों से देवभोग में रहते हुए वन विभाग में सेवारत थे. उनकी इच्छा थी के बेटा इस पिछड़े इलाके में सेवा दे. पिता के साथ सुनील भी देवभोग के हालातो से परिचित थे. उन्होंने शासन के समक्ष देवभोग में सेवा देने की इच्छा जाहिर की. भरे कोरोना काल में नवंबर 2020 में देवभोग अस्पताल में बतौर मेडिकल ऑफिसर पदस्थ हुए. कोरोना पिक पर था. लेकन डॉक्टर रेड्डी ने अपनी विकलांगता को सेवा में आड़े आने नहीं दिया. गंभीर हालातो के बीच, खुद सुरक्षित रहते हुए पूरे सीजन में 800 से ज्यादा कोरोना पीड़ितो का इलाज किया. नवंबर 2022 देवभोग बीएमओ का प्रभार मिला तब से मरीजों के इलाज के अलावा प्रशासनिक कार्य में भी जुटे रहते हैं.

2 बार कोरोना पॉजिटिव, 8 के बजाए 24 घंटे ड्यूटी

देवभोग सिविल अस्पताल में 8 के बजाय केवल 3 मेडिकल ऑफिसर पदस्थ हैं. देवभोग सीएचसी में पदस्थ डॉक्टर प्रकाश साहू कोरोना काल में दो बार पॉजिटिव हुए. पॉजिटिव रहते हुए भी कई मर्तबे किट पहनकर, अपनी निजी कार से मरीज को कोविड सेंटर में भर्ती कराया. इस अस्पताल में डेढ़ लाख की आबादी निर्भर है. रोजाना 100 से 150 लोग इलाज कराने आते हैं. रोजाना 20 भर्ती भी होते हैं. डॉक्टर की कमी के कारण 8 के बजाए 24 घंटे की ड्यूटी करनी होती है. विषम हालातों के बावजूद डॉक्टर प्रकाश साहू 2019 से अभाव ग्रस्त देवभोग अस्पताल में पूरी समर्पण भाव से अपनी सेवा दे रहे हैं.

देवदूत बनकर पहुंची RBSY की टीम

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसवाय) के तहत तैनात डॉक्टर सूर्यकांत साहू, डॉक्टर डेविका साहू, डॉक्टर केशव सोनी और उनक टीम मेंबर दिल की बीमारी से जूझ रहे बच्चो की पहचान, उनकी जांच और फिर उनका सफल इलाज करा रहे हैं. जानकारी के आभाव के चलते इस अंचल में पीड़ित बच्चों के माता-पिता दिल की बिमारी को पहले तो गंभीरता से नहीं लेते. फिर बामुश्किल जांच के लिए तैयार होते हैं. रिपोर्ट आने के बाद उनकी गंभीरता समझते हैं. इसी महीने चिंगराभांठा की 7 साल की बेटी योगेंद्री सोरी की ओपन हार्ट सर्जरी हुई. डॉक्टर बताते हैं कि रोग की पहचान के बाद जांच कराने के लिए पालक को राजी करने में एक महीना लगा. टीम ने राजधानी के हॉस्पिटल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए शासन से एप्रूवल भी ले लिया. तारीख नजदीक आई तो ऑपरेशन के लिए फिर से पिता मुकर गया. टीम के डॉक्टर्स ने कई दौर तक पालकों को समझाया. जिसके बाद जून में बच्ची की नि:शुल्क ओपन हार्ट सफल सर्जरी हुई. जब डॉक्टर्स बेटी को सकुशल लेकर घर लौटे तो परिवार वालो ने भगवान की तरह उनकी आरती उतारकर पूजा अर्चना करने लगे. टीम ने इलाके में अब तक स्कूल और आंगनबाड़ी का सतत दौरा कर 78 जन्मजात हृदय रोगियों की पहचान की है. इनमें से 30 का सफल ऑपरेशन हुआ. बाकी को समान्य इलाज से ठीक किया जा रहा है.

30 साल से मानव सेवा कर रहे डीडी ठाकुर

सरकारी के अलावा निजी क्लीनिक का संचालन करने वाले कुछ डॉक्टर भी अपने पैथी में इलाज कर प्राथमिक उपचार की सेवा दे रहे हैं. डॉक्टर डीडी ठाकुर पिछले 30 साल से उपचार कर रहे हैं. इसके अलावा सरकारी योजना में भी अपना योगदान दे रहे हैं. हाल ही में उन्हें राजधानी में आयोजित एक समारोह में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने क्षय रोग कार्यक्रम में विशेष योगदान के लिए निक्षय मित्र का सम्मान दिया था. जिले में यह सम्मान पाने वाले वे इकलौते निजी चिकित्सक हैं.

50 हजार की सैलरी छोड़ी

24 साल के मनीष तिवारी ने 2021 में ऑप्टोमेट्रिस की पढ़ाई पूरी की. हैदराबाद की नामी आई इंस्टीट्यूट एल वी प्रसाद में अपनी ट्रेनिंग भी पूरी की. राजधानी में 30 हजार की सैलरी में काम शुरू किया जो साल भर में 50 हजार तक पहुंच गई. देवभोग में पले बढ़े मनीष ने अभाव ग्रस्त देवभोग इलाके में सेवा देने की ठानी. 3 महीने पहले नौकरी छोड़कर मनीष ने खुद का विजन सेंटर शुरू किया. लोगों को आंख और नजर के चेकअप के लिए राजधानी या ओडिशा दौड़ लगानी पड़ती थी. अब स्थानीय स्तर पर यह सेवा मिल रही है. वहीं Dr अरविंद तिवारी भी पिछले 15 साल से क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. जिससे लोगों को फायदा हो रहा है.