अजय शर्मा,भोपाल। मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. 2018 से 2023 के इस कार्यकाल का साढ़े चार साल बीत चुका है। साल खत्म होते-होते जनता फिर अपनी सरकार चुनेगी. यानी एक बार फिर जनप्रतिनिधियों की आवाम की उम्मीदों पर खरा उतरने की बारी है। एमपी की 230 विधानसभा सीटों में मौजूदा हालात क्या हैं, क्षेत्र की क्या स्थिति है, कौन सा विधायक कितने पानी में है ? इन सभी का जवाब अब विधायक जी का रिपोर्ट कार्ड (vidhayak ji ka Report Card) देगा. लल्लूराम डॉट कॉम आपको सूबे के सभी विधायकों की परफॉमेंस और उनके क्षेत्रों की जमीनी हकीकतों के बारे में बताने जा रहा है। विधायक जी का Report Card में आज बात सीहोर जिले के इछावर विधानसभा सीट की की।
इछावर विधानसभा सीट का इतिहास
साल 2018 की तरह 2023 में भी मध्य प्रदेश की सत्ता में दोबारा सरकार बनाने का दावा कर रही प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं. विधायक जी का रिपोर्ड कार्ड में हम बीजेपी के एक ऐसे गढ़ की बात कर रहे हैं, जिसके गठन (1977) के बाद पूरे 46 साल में कांग्रेस महज दो बार ही भेद पाई है. वर्तमान में भी बीजेपी के इस गढ़ में जमीनी स्तर पर कांग्रेस की तैयारियां फिलहाल तो अधूरी सी नजर आ रही हैं.
सात बार विधायक बने करण सिंह वर्मा
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सबसे सीनियर विधायक व प्रदेश के पूर्व राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा के इछावर विधानसभा की. साल 1977 से पहले इछावर विधानसभा क्षेत्र सीहोर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत ही आता था. साल 1977 में इछावर विधानसभा का गठन हुआ. साल 1977 के पहले ही चुनाव में यहां जनता पार्टी के नारायण प्रसाद गुप्ता विधायक चुने गए.
हालांकि साल 1980 में हरिचरण वर्मा कांग्रेस से विधायक चुने गए. साल 1980 के बाद से तो मानो इछावर विधानसभा बीजेपी का गढ़ सा बन गया. बीजेपी के सबसे सीनियर विधायक व पूर्व राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा इछावर विधानसभा से सात बार विधायक चुने गए. वर्तमान में भी वे ही यहां से विधायक हैं.
दो बार ही इस गढ़ को भेद पाई कांग्रेस
साल 1977 में इछावर विधानसभा के गठन के बाद बीजेपी के इस गढ़ को कांग्रेस महज दो बार ही भेद पाई है. साल 1977 में इछावर विधानसभा के गठन के बाद पहली बार जनता पार्टी से नारायण प्रसाद गुप्ता यहां से विधायक चुने गए थे. इसके बाद साल 1980 में कांग्रेस के हरीचरण वर्मा 1980 में विधायक बने. 1880 के बाद से तो मानो करण सिंह वर्मा ने इछावर विधानसभा अपने नाम ही कर ली.
साल 1985 में वे (करण सिंह वर्मा) पहली बार विधायक बने. इसके बाद साल 1990, 1993, 1998, 2003 और साल 2008 करण सिंह वर्मा विधायक चुने गए. हालांकि साल 2013 में इस गढ़ पर कांग्रेस ने अपना कब्जा किया और शैलेन्द्र पटेल कांग्रेस से विधायक बने. हालांकि शैलेन्द्र पटेल अपनी इस जीत को आगे बरकरार नहीं रख सके और साल 2018 में पुन: करण सिंह वर्मा विधायक चुने गए. वर्तमान में करण सिंह वर्मा ही यहां से विधायक हैं.
हार का कारण बना था यह गाना
साल 2013 में मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लहर होने के बाद भी एमपी के सबसे सीनियर एमएलए करण सिंह वर्मा चुनाव हार गए थे. हूं कई करुं गीत की वजह से छह बार के भाजपा विधायक करण सिंह वर्मा साल 2023 के विधानसभा चुनाव में युवा कांग्रेसी नेता शैलेन्द्र पटेल से चुनाव हार गए थे. जो गीत था ‘वह हूं कई करुं, अरे भाया हूं कई करुं, अरे नेताजी आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा, हूं कई करुं, नेताजी कहते रहते हैं हूं कई करुं. युवा को रोजगार नहीं है, हूं कई करुं. क्षेत्र में व्यापार नहीं है, हूं कई करुं.
महज 744 वोटों से मिली थी हार
साल 2013 के चुनावों परिणामों बीजेपी के सीनियर छह बार के विधायक करण सिंह वर्मा को इस चुनाव में महज 744 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में 11 उम्मीदवार मैदान में थे. बीजेपी की ओर से छह बार के विधायक करण सिंह वर्मा तो कांग्रेस ने युवा नेता शैलेन्द्र सिंह पटेल पर विश्वास जताया था. अन्य में शैलेन्द्र रामचरण पटेल, अनोखीलाल, नरेन्द्र सिंह, अजब सिंह मेवाड़ा, महेन्द्र कुमार, शिवराम परमार, नवीन, उमरो सिंह और कर्ण सिंह वर्मा शामिल थे.
इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शैलेन्द्र पटेल को 74 हजार 704 मत प्राप्त हुए थे, जबकि बीजेपी के करण सिंह वर्मा को 73 हजार 960 वोट मिले थे. इस तरह वे 744 वोटों से चुनाव हार गए थे. अन्य प्रत्याशी शैलेन्द्र रामचरण पटेल को 2246, अनोखीलाल 1776, नरेन्द्र सिंह मनडोलिया 1463, अजब सिंह मेवाड़ा 1109, महेन्द्र कुमार 470, शिवराम परमार 469, नवीन 414, उमरो सिंह 293 और कर्ण सिंह वर्मा को 221 वोट प्राप्त हुए थे.
इछावर सीट के साथ जुड़ा है मिथक
कहा जाता है कि जो मुख्यमंत्री इछावर का दौरा करता है, उसको कुर्सी गंवानी पड़ती है और इतिहास भी कुछ ऐसा ही बताता है. इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकता हैं कि खुद सीएम शिवराज सिंह बतौर सीएम रहते इस इलाके में नहीं आए हैं. बता दें इछावर के मिथक को तोड़ने का प्रयास कई मुख्यमंत्री कर चुके हैं, लेकिन जितने भी मुख्यमंत्रियों ने यहां कदम रखा उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.
2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी इस मिथक को तोड़ने के लिए 15 नवंबर, 2003 को आयोजित सहकारी सम्मेलन में शामिल होने इछावर पहुंचे थे. इसके बाद मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था. इछावर के मिथक को तोड़ने की कोशिश मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू ने भी की थी.
काटजू 12 जनवरी 1962 को विधानसभा चुनाव के एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए थे और इसके बाद 11 मार्च 1962 को हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हार गई और डॉ. कैलाश नाथ काटजू को अपनी सत्ता से हांथ धोना पड़ा. वहीं 1 मार्च 1967 को द्वारका प्रसाद मिश्र भी इछावर आए थे और 7 मार्च 1967 को हुए नए मंत्रिमंडल के गठन से उपजे असंतोष के चलते मिश्र को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
इछावर विधानसभा में कुल 1 लाख 99 हजार 371 मतदाता है. जिसमें से 1 लाख 4 हजार 544 पुरुष मतदाता, 94 हजार 825 महिला और दो अन्य मतदाता शामिल है.
अब तक के विधायक
1977: नारायण प्रसाद गुप्ता, जनता पार्टी
1980: हरि चरण वर्मा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (I)
1985: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
1990: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
1993: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
1998: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
2003: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
2008: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
2013: शैलेंद्र पटेल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2018: करण सिंह वर्मा, भारतीय जनता पार्टी
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