अनिल सक्सेना, रायसेन/इमरान खान, खंडवा। श्रावण मास का आज पहला सोमवार है। सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है। इसी कड़ी में रायसेन जिले के विश्व प्रसिद्ध विशाल शिवलिंग मंदिर भोजपुर में लाखों की संख्या में भक्तों शिवलिंग अभिषेक किया। इधर खंडवा जिले के ओंकारेश्वर मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है।
लाखों भक्तों ने किया शिवलिंग का अभिषेक
रायसेन जिले के भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर 11वीं सदी से 13वीं सदी की मंदिर वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। यहां सुबह से ही भक्तों को तांता लगा हुआ है। लाखों की संख्या में भक्त शिवलिंग अभिषेक किया। प्रशासन ने और पुरातत्व विभाग द्वारा भक्तों के लिए दर्शन व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किया गया है। यह 10वीं सदी में राजा भोज के समय का विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग मंदिर हैं। मंदिर का पूरी तरह से नक्काशीदार गुंबद और पत्थर की संरचनाएं, जटिल नक्काशी से तैयार किये गए प्रवेश द्वार और उनके दोनों तरफ उत्कृष्टता से गढ़ी गई आकृतियां देखने वालों का स्वागत करती हैं। मंदिर की बालकनियों को विशाल कोष्ठक और खंभों का सहारा दिया गया है।
11 वीं सदी का शहर
मंदिर की बाहरी दीवारों और ढांचे को कभी बनाया ही नहीं गया। मंदिर को गुंबद के स्तर तक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया मिट्टी का रैंप अभी तक दिखाई पड़ता है। भोजपुर, बलुआ पत्थर की रिज पर स्थित 11 वीं सदी का एक शहर है। यह प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। बेतवा नदी इस प्राचीन शहर के पास बहती है जो भोजपुर पर्यटन में पुरानी दुनिया के आकर्षण का समावेश करती है। यह शहर प्रदेश की राजधानी भोपाल से 28 किलोमीटर की मामूली सी दूरी पर स्थित है। यहां ग्यारहवीं शताब्दी की पर्याप्त बुद्धिमत्ता से निर्मित दो बांधों वाली विस्मयकारी संरचना है, जो बेतवा नदी का रुख मोड़ने और पानी को रोकने के लिए भारी पत्थरों से बनाई गई थी। जिनसे एक झील का निर्माण हुआ था।
सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है भोजेश्वर मंदिर
भोजपुर का यह नाम परमार राजवंश के सबसे शानदार शासक राजा भोज के नाम पर रखा गया था। उनके शासनकाल के तहत बिना तराशे हुए बड़े पत्थरों की इमारत बनाने की एक प्राचीन शैली द्वारा (विशाल चिनाई) निर्मित यह बांध अवश्य देखे जाने वाले स्थानों में से एक है। भोजपुर और उसके आसपास के पर्यटक स्थल भोजेश्वर मंदिर को पूर्व के सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है। जो भारत की उन अद्भुत संरचनाओं वाली इमारतों में से एक है। इस प्राचीन शहर के दैत्य जैसे बांधों के अवशेष आपको आश्चर्य में डाल देंगे। अधूरा होने का तथ्य ही इस प्राचीन शहर को अनूठी गुणवत्ता प्रदान करता है। उन चट्टानी खदानों में जाना बहुत ही रोमांचकारी होता है। जहां हाथ से तराशे गए पत्थर के मूर्ति शिल्प को देख सकते हैं जो कभी एक पूरे मंदिर या महल का रूप नहीं ले पाए।
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श्रावण मास को लेकर दर्शन की खास व्यवस्था
हर दूसरे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल पर आप प्राचीन शहर के खंडहरों का निरीक्षण कर सकते हैं। यहां भक्तों की कतार सुबह से लगी हुई हैं। मंदिर में देश दुनिया से भक्त आते हैं और यहां आकर शिव भक्ति में लीन हो जाते हैं। प्रसाशन ने इस बार अच्छी व्यवस्थाएं की हैं और भक्तों को शिवलिंग के दर्शन आसानी से हो रहे हैं। बच्चों के मनोरंज के लिए विशाल मेला लगा हुआ है। पुलिस और मिलिट्री दोनों मंदिर व्यवस्थाओं को संभाले हुए हैं। नेता और अधिकारियों का आना जाना लगा हुआ हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में लगा भक्तों का तांता
खंडवा जिले के तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भी प्रथम सोमवार के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं। आज के दिन शिव भक्त भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और भोले बाबा का ध्यान करते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्रोत के अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का संयुक्त रूप से चतुर्थ स्थान है। मां नर्मदा से घिरे ॐ आकार के पर्वत पर बना यह अतिप्राचीन मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का शयन स्थान माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव दिनभर अखिल ब्रह्मांड में विचरण करते हैं। आवागमन करते, लेकिन वह शयन ओंकार पर्वत पर ही करते है। यही कारण है कि जो यहां भगवान ओंकारेश्वर की शयन आरती होती है। सावन माह के प्रथम सोमवार पर डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने मां नर्मदा में आस्था की डुबकी लगाई है।
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