पुरषोत्तम पात्र, गरियांबद। सरकार किसानों के लिए हर सुविधाएं मुहैया कराने पानी की तरह पैसा बहा रही है, ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरे. कम दामों में खाद मिले, जिसके लिए सरकार गौठानों का निर्माण कराई है, लेकिन सरकारी नुमाइदों के कारनामों ने हद कर दिए हैं. 20 हजार क्विंटल वर्मी कंपोस्ट कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला. इसकी पोल तब खुली जब LALLURAM.COM की टीम को किसानों को खाद नहीं मिलने की भनक लगी. परत दर परत पड़ताल करने पर होश उड़ाने वाले खुलासे हुए. पंचायत और कृषि विभाग ने कागजों में ही गोबर खरीदी की और कागजों में ही किसानों को बांट दिया. सरकार को झूठी रिपोर्ट सौंप दी.
पड़ताल में खुले कई राज
दरअसल, गरियाबंद में कागजों में गोबर की ख़रीदी हुई है, जब किसानों को खाद देने की बारी आई तो जिम्मेदारों की कलई खुल कई. पंचायत और कृषि विभाग के रिपोर्ट में दावा किया गया कि 337 गौठानों ने इस सीजन 20 हजार क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार किया, जिसमें 90 फीसदी का वितरण किया गया, लेकिन सहकारी समिति की रिपोर्ट ने दोनों विभाग के कारनामों की पोल खोल कर रख दी. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि किसानों तक खाद आधा भी नहीं पहुंचा. वितरण भी अटक गया है.
20 फीसदी किसानों तक भी नहीं पहुंचा खाद
जून माह तक ऋण वितरण के साथ ही प्रत्येक किसानों को एकड़ प्रति एक बोरी यानी 30 किलो वर्मी खाद 10 रु प्रति किलो के दर पर उपलब्ध कराया जाना था, लेकिन गौठानों ने समय पर पर्याप्त खाद उपलब्ध नहीं कराया. यह वर्तमान में 20 फीसदी किसानों तक भी खाद नहीं पहुंच सका है.
गोधन की संख्या कम और गोबर की आवक कम
जानकार बताते हैं कि प्रत्येक गौठान को रोजाना 2 क्विंटल गोबर की खरीदी करना अनिवार्य था, लेकिन मैदानी इलाके वाले विकासखंड फिंगेश्वर, देवभोग, मैनपुर के गोहरापदर जैसे इलाके में गोधन की संख्या कम है, जिससे गोबर की आवक भी कम है. लिहाजा कागजों में गोबर खरीदी कर ली गई.
कागजों में गोबर की खरीदी, अफ़सरों को बोगस रिपोर्ट
कुल मात्रा का 30 से 40 फीसदी मात्रा में गोबर खाद बनाने की अनिवार्यता थी. जून माह में जब जिले के कलेक्टर बदले तो गोधन योजना क्रियान्वयन की प्राथमिकता में आ गया. गोबर की तरह खाद को भी कागजों में तैयार करने की मंशा पर पानी फिर गया. हालांकि गोबर खरीदी के समय ही इस गड़बड़ी की नींव रख चुके हैं. मैदानी कर्मी अब भी अफ़सरों को बोगस रिपोर्ट देकर मामले में पर्दा डालने कोई कसर नहीं छोड़े हैं.
337 गौठानों से अब तक 20 हजार क्विंटल खाद तैयार ?
पंचायत और कृषि विभाग के रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिले के 337 गौठानों से अब तक 20 हजार क्विंटल खाद तैयार कर लिया गया है. रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कृषि उप संचालक संदीप भोई ने बताया कि तैयार मात्रा का 90 फीसदी यानी 18 हजार क्वी खाद सहकारी समितियों तक पहुंच चुका है. बचत मात्रा गौठान में स्टॉक रखा हुआ होगा, जिसे जल्द पहुंचा दिया जाएगा.
आधा भी नहीं मिला खाद- सहकारी समिति
सरकारी दावों की सच्चाई जानने हम देवभोग और गोहरापदर जिला सहकारी बैंक के अधीन आने वाले 17 पंजीकृत समिति तक पहुंचे. दो दिनों की पड़ताल में चौकाने वाले मामले सामने आए. गोहरापदर के 9 समिति में 63 गौठानों ने 20 जून को बता दिया था की वे 1188 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट देंगे, लेकिन 15 जुलाई तक वे महज 287 क्विंटल खाद ही दे पाए थे.
सरकारी रिपोर्ट में कुछ और ?
सरकारी रिपोर्ट में 5 जुलाई तक 520.35 क्वी वितरण बताया जा चुका था. ऐसे ही हाल देवभोग बैंक के आधीन आने वाले 8 सहकारी समिति के थे. क्यू आर जनरेट कराए गए मात्रा के अनुपात में 54 गौठान द्वारा केवल 1100 क्वी खाद उपलब्ध कराया गया था.
विलंब के चलते समिति में जाम हो रहा खाद
जिस खाद को जून माह तक उपलब्ध कराया जाना था, उसकी आधी मात्रा की पूर्ति जुलाई के दूसरे सप्ताह तक भी नहीं हो सका, जबकि खाद के उपयोग का समय भी निकल गया है. देवभोग के समीतियो में भंडारित मात्रा में अब तक केवल 709 क्वी खाद वितरण किया जा सका है. जून अंतिम तक 5 हजार किसान ऋण ले चुके थे. ऐसे हालत जिले भर में बन चुके हैं. अफसरों के दबाव से अब खाद भी तैयार हो जाएंगे, तो किसानी कार्य में मस्त किसान इसे लेने दोबारा समिति नहीं आएंगे.
रेत और मिट्टी मिला रहे, वापस करेंगे किसान
कंपोस्ट खाद तैयार करने में 90 दिन का समय लगता है. ऐसे में गड़बड़ी पर पर्दा डालने के लिए गोबर में मिट्टी और रेत मिला कर खपाने की कोशिश हो रही है. बरबहली के नवागांव गौठान ने लाटापारा समिति में सप्ताह भर पहले 100 पैकैट खाद सप्ताह भर पहले भेजा था.
समिति प्रबंधक चरण यदु ने बताया कि इसमें से 80 पैकेट वितरण कर दिया गया, लेकिन गिराशुल के चंदन अग्रवाल समेत कुछ किसानों ने क्वालिटी खराब होने की शिकायत की, जिसके बाद खाद को वापस मंगाया गया है. जांच के लिए कृषि अधिकारी सैंपल ले गए हैं. गौठान का भुगतान रोक दिया गया है. देवभोग जनपद सीईओ प्रतीक प्रधान ने कहा कि गुणवत्ता की जिम्मेदारी कृषि विभाग की है.
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