रणधीर परमार,छतरपुर। डबडबाई दर्द भरी नम आंखे माथे पर चिंता की लकीरें, रोती बिलखती प्रियंका आदिवासी की ये वो कहानी है, जिसे सुनकर हर किसी का दिल पसीज जाएगा. प्रियंका आदिवासी एक सामान्य परिवार की वो महिला है, जो शादी के बाद से अपने पति को ही अपना सब कुछ मनाती है. पति की अनुकम्पा नियुक्ति के लिए पति को गोद में उठाकर सरकारी दफ्तरों की चौखट में आज से नहीं बल्कि 2019 से राजधानी तक चक्कर काट आई. मगर किसी का भी दिल नहीं पसीजा. क्योंकि यह उत्तर प्रदेश की ज्योति मौर्य जैसी महिला नहीं की एसडीएम का पद मिलते ही अपने पति को छोड़ दे. प्रियंका वह महिला है, जो अपने पति सहित परिवार का भरण पोषण के लिए दिन रात जद्दोजहद करती है. पिछले कई दिनों से छतरपुर के जिला कलेक्टर की चौखट में मंगलवार की जनसुनवाई में हाजरी लगाती चली आ रही है. मगर बार-बार निराशा ही हाथ लगती है. प्रियंका 50 किलोमीटर का सफर तय करके छतरपुर पहुंचती है.
घर की हालत भी ठीक नहीं
प्रियंका ने कहा कि पिछले कई दिनों से घर के हालात ठीक नहीं है. मेरी सास के देहांत के बाद अभी तक जैसे तैसे 2 नंदद की शादी कर दी. मगर अभी भी 2 नंदद की शादी बाकी है. परेशानी के कारण उनकी शादी नहीं कर पा रहे. भूखे मरने जैसे हालात बने हुए हैं. मैं अपने बेवस लाचार पैरों से दिव्यांग पति अंशुल आदिवासी को लेकर कशमकश भरी जिंदगी से जूझ रही हूं.
मां शिक्षक थी, नहीं मिली अनुकंपा नियुक्ति
अंशुल का कहना है कि मेरी पत्नी कई सालों से मुझे गोद में लेकर भटक रही है, मगर कही भी सुनवाई नहीं हो रही. मेरी मां का देहांत वर्ष 2015 में हो गया था, जोकि शासकीय शिक्षक थी. जिसकी अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए मैं दर-दर भटक रहा हूं. मेरी पत्नी मुझे एक बच्चे की तरह इधर से उधर लेकर घूम रही है. मेरी पत्नी ज्योति मौर्य जैसी नहीं की पद मिलते ही पति को छोड़ दें. प्रियंका मेरा बहुत ख्याल रखती है.
एक्सीडेंट के बाद हो गया लाचार, योग्यता के अनुसार मिले नौकरी
ऐसी स्थिति होने के बावजूद भी मेरी हालत यह है कि मैं अपने हाथों से पानी भी नहीं पी सकता. मेरी ऐसी हालात को देखने के बावजूद भी अधिकारियों को कोई भी तरस नहीं आ रहा है. घर की स्थिति बहुत खराब है. अभी भी दो बहने शादी के लिए घर में बैठी हुई है. मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा, क्योंकि वर्ष 2019 में मेरा एक्सीडेंट हो गया था. एक्सीडेंट के बाद से मेरी पत्नी ही मेरा ख्याल रखती है. वही इधर-उधर लेकर घूम रही है. मगर न्याय की उम्मीद कहीं नजर नहीं आ रही है. जिला शिक्षा अधिकारी लंबे समय से गुमराह कर रहे. मैं यह चाहता हूं कि मेरी योग्यता देखते हुए मैं जिस लायक हूं, उस स्तर पर मुझे अनुकंपा नियुक्ति दे दी जाए. जिससे की परिवार का भरण पोषण चलने लगेगा.
क्या कह रहे कलेक्टर साहब ?
शिवराज सरकार के मंसूबों पर पानी फेर रहे जिला कलेक्टर संदीप जी आर अपनी सफाई देते नजर आए कहा कि जहां भी पद रिक्त है, वहां पर कैंप लगाकर प्राथमिकता से और संवेदनशीलता से छतरपुर जिले में कार्रवाई हुई है. जो भी पद रिक्त थे, उन पर नियुक्तियां की गई है. जहां की पोस्ट को लेकर किसी प्रकार की कोई दिक्कत है, तो उसको शासन स्तर पर भेजा जाएगा. जितने भी नियमानुसार नियुक्तियां कर सकते थे. उतनी कैंप के माध्यम से की जा चुकी है. वही जब प्रियंका और अंशुल को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कि जहां पर नियुक्तियां नहीं है, वहां पर इस तरीके की दिक्कत होगी. बाकी कैंप के माध्यम से निराकरण सभी का कर दिया गया है.
कब मिलेगी अनुकंपा नियुक्ति
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर लगातार सक्रिय है. हर एक परिवार के व्यक्तियों को अनुकंपा नियुक्ति देने का प्राथमिकता से कम किया गया है. मगर कुछ ऐसे अधिकारी है, जो वर्ष 2019 से इस समस्या का समाधान नहीं कर पाए, ना ही उनको आज तक कोई संतोषजनक जवाब दिया कि वह कलेक्टर ऑफिस के चक्कर लगाना बंद कर दें. बड़ा सवाल यह है कि किसी अन्य जगह भी उसकी पोस्टिंग कर उसे अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती थी, मगर प्रशासन ने ऐसा करना मुनासिफ नहीं समझा. इस सिस्टम की मार अंशुल आदिवासी का पूरा परिवार झेल रहा है. बहरहाल अब देखने को यह होगा कि इनको कब तक न्याय मिल पाता है या यूं ही सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहेंगे.
Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक