पुष्पेंद्र सिंह, दंतेवाड़ा. जिला प्रशासन को सुदंरता दिखाने का ऐसा बुखार चढ़ा है कि भरी बरसात में भी तालाबों का गहरीकरण और सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. सदियों पुराना बूढ़ा सागर तालाब प्रशासन की जिद के आगे अपनी दुर्दशा पर रो रहा रहा है. बारसूर के लोग इसे तीन तालाबों का संगम भी कहते हैं. जो कि राम सागर, शिव सागर और कृष्ण सागर तालाब से मिलकर बनता है.

90 एकड़ में फैला ये तालाब तकरीब 7 एकड़ और कम हो जाएगा. जेसीबी से खुदाई कर तलाब के किनारों को पाट दिया गया है. इस तालाब का कार्य मानसून आने के बाद जिला प्रशासन ने शुरू करवाया. तालाब की न तो साफ-सफाई करवाई गई, ना ही गहरीकरण करवाया. सिर्फ जेसीबी से मिट्टी को काटकर किनारों को पाट दिया गया. जहां से मिट्टी उठाई गई है वहां बहुत गहरे गढ्ढे हो गए हैं. जिससे मवेशी और बच्चों को जान का खतरा बढ़ गया है.

बारसूर नगर पंचायत के लोगों का कहना है कि मानसून के समय तो जमीनों की नाप-जोंख तक बंद करवा दी जाती है, लेकिन यहां तालाबों के काम करवाने के लिए ये प्रशासन की कौन सी नई गाईड लाइन आई है. फिलहाल जिले में तालाबों के कार्य जोरों पर है. इस व्यवस्था के खिलाफ लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.

जलसंसाधन विभाग की जिम्मेदारी, लेकिन वो भी चुप

जलाशय, तालाब, नदी और नालों की दशा-दिशा का निर्धारण जलसंसाधन विभाग को करना होता है. सदियों पुराने इस तालाब के सौंदर्यीकरण और मरम्मत पर विभाग सन्न है और चुप भी है. बूढ़ा सागर तालाब का रकबा घट जाएगा इस बात की तो विभाग को जानकारी ही नहीं है. इस तलाब से एक दर्जन से ज्यादा गांव के लोग गर्मी में सब्जी भाजी की खेती करते हैं. सात एकड़ के करीब तालाब का रकबा कम होना किसानों के लिए पानी की किल्लत खड़ी कर सकता है. जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से इस विषय की जानकारी ली गई तो उनका कहना था कि वहां आरईएस विभाग काम करवा रहा है. विभाग को पत्र लिखकर जानकारी मांगी गई है. उस तालाब में क्या-क्या काम हो रहा है इसकी जानकारी नहीं है.

छिंदक वंश के तालब का मूल स्वरूप

राजस्व रिकॉड में खसरा नंबर 644 में 63.88 एकड़ का मूल तालाब है. इसके बाद डुबान क्षेत्र की जमीन है. ये खसरा नंबर 605/2 का 10.33 एकड़ और खसरा नंबर 607/2 की 7.27 एकड़ जमीन शामिल है. इतना बड़ा रकबा है. इस रकबे से सात एकड़ जमीन घट जाएगी. तालाब के घटते रकबे को देख लोग परेशान भी हैं और मन में आक्रोश भी पनप रहा है. छिंदक वंश के तालाब का मूल स्वरूप सिकुड़ रहा है. सौंदर्यीकरण, गहरीकरण फिलहाल अभी चार महीने तो हाशिए पर ही हैं. इस कार्य को शरू ही मानसून में करवाया गया है, जब मिट्टी से जुड़े सभी कामों पर शासन की रोक लगी होती है.

जिला मुख्यालय में चितालंका स्थित तालाब का बुरा हाल हो गया है. इस तालाब का सौंदर्यीकरण करने के नाम पर करोड़ों का काम करवाया जा रहा है. प्रशासन की मंशा बेहतर काम करवाने की होती तो समय का सही चयन किया होता. लोगों का कहना है कि तलाब का कार्य बारिश के मौसम में करवाने के पीछे मंशा तो लीपा-पोती करने की है. इस तालाब को जून महीने में खाली करवाया गया. अब इसका गहरीकरण करवाया जा रहा है. बारिश में गहरीकरण होगा तो यह तालाब कभी लबालब भरेगा नहीं. इस तालाब में पानी भरने के लिए दूसरे मानसूमन का इंतजार करना होगा. आस-पास के लोग कहते हैं कि यह तालाब कभी सूखा नहीं. पहली बार प्रशासन की मेहरबानी से भरी बरसात में तालाब प्यासा है.

डी ग्रेड के ठेकेदारों को पूरा काम

शासन का साफ दिशा निर्देश है कि 15 जून के बाद मिट्टी का काम नहीं होगा. बावजूद इसके जिले में धड़ल्ले से काम हो रहा है. हैरानी की बात तो ये है कि करोड़ों के काम को टुकड़ों में बांट दिया गया. एक तालब के काम को 50 से 80 लाख के 9 टुकड़ों में बांटा गया है. इतने बड़े काम को डी ग्रेड के ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने लिए किया गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की मंशा अपने चहेते ठेकेदारों को लाभांवित करने की है.