शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्यप्रदेश में सियासी ताजपोशी आदिवासी सीटों से तय होगी. लिहाजा कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियों का फोकस उन 80 सीटों पर है, जहां की जीत आदिवासी वोटरों के हाथ में है. अब इन सीटों के समीकरण आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) ने बिगाड़ दिए हैं. कांग्रेस समेत अन्य सियासी दलों के संपर्क के बाद गठबंधन के सपने तो जयस ने तोड़ दिया है.

साल 2018 में हुए चुनावों में कांग्रेस के साथ जयस ने सियासी कदमताल किए थे. लिहाजा धार जिले की मनावर विधानसभा में आदिवासी नेता हीरालाल अलावा ने जीत दर्ज कराई थी. लेकिन अब जयस अपनी शक्ति के विभाजन से इंकार कर रही है. अंदरूनी तौर पर कांग्रेस ने जयस से संपर्क भी किया. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी ने भी जयस को चुनावी गठबंधन की पेशकश की. लेकिन नतीजा सिफर ही निकला.

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जयस के चुनावी प्रबंधन समिति का गठन

अब चुनावी संग्राम में कांग्रेस और बीजेपी की मुसीबत बढ़ाने वाली जयस ने चुनावी प्रबंधन समिति का गठन भी कर लिया है. 47 आदिवासी आरक्षित सीटों पर जयस के उम्मीदवारों की जल्द घोषणा का दावा है, तो 35 उन सीटों पर भी प्रत्याशियों के नाम पर मंथन किया जा रहा है, जहां आदिवासी निर्णायक भूमिका में हैं. जयस के कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि एमपी की सियासत में 2023 के साथ 2024 में आदिवासी सीटों के कारण कांग्रेस बीजेपी का बिगड़ा समीकरण दिखाई देगा.

जयस ने बीजेपी-कांग्रेस की धड़कने बढ़ाई

आदिवासियों में पैठ और सीटों पर राजनीतिक पकड़ रखने वाली जयस ने बीजेपी और कांग्रेस की धड़कनों को बढ़ा दिया है. हालांकि कांग्रेस का दावा है कि जयस की चुनावी गतिविधियों के ऐलान से बीजेपी टेंशन में है. 15 माह की सरकार में कमलनाथ ने जितना साथ आदिवासियों का दिया उतना बीजेपी 18 सालों में नहीं दे पाई. बीजेपी ने कहा कि जयस हो या आदिवासी इन्हें अपमानित करने का काम कांग्रेस ने किया है. आगे क्या होगा इसका जवाब चुनावों के परिणाम देंगे.

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एंट्री से किसे नफा-किसका नुकसान

इसमें दो मत नहीं है कि आदिवासी मतदाता ही प्रदेश की सत्ता का आधार होंगे. उधर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सियासी जंग में उतरे जयस ने तमाम समीकरणों को उलझा दिया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि घोषणाओं और वादों से भरे आदिवासियों के मत का दान आखिर किसके पाले में होगा. आखिर जयस की एंट्री से किसे नफा-किसका नुकसान होगा.

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