गनपत साहू, रायपुर. छत्तीसगढ़ में आज भी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई स्थान बेनाम और अनजान है. कई लोग तो इसके बारे में सुना तक नहीं है. ऐसा ही गरियाबंद जिले के गजपल्ला वाटरफॉल है. यहां नेचर का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है, लेकिन यहां जाने के लिए भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यहां आनंद लेने के लिए कष्टों से गुजरना पड़ता है. तब जाकर प्रकृति की गोद में शांति के साथ बैठ सकते हैं.

गजपल्ला जलप्रपात रायपुर से जाने पर गरियाबंद राजिम रोड पर गरियाबंद से 14 किलोमीटर पहले कचना धुर्वा से 200 मीटर की दूरी पर मुख्य मार्ग को छोड़कर दाया हाथ साइड जाना होता है. यहां जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. जंगल में जाने के लिए तीन से चार किमी भारी दलदल वाली पगडंडी को पार कर जाना होता है. यहां अधिक कीचड़ की वजह से मोटरसाइकिल भी नहीं जाती है, लेकिन हम हिम्मत करके बाइक से ही वहां जाने के लिए ठान लिए.

इधर कोई व्यक्ति दूर-दूर तक नजर भी नहीं आता है. पूरी तरह से विरान इस जंगल में जाने के लिए कई बार हमारी गाड़ी फंस गई. कई दफे तो हम सोच रहे थे कि यहां पहुंचना बहुत कठिन है, चलो वापस चलते हैं, फिर हम सोचते थे कि जब हम इतनी मेहनत करके यहां आ गए हैं तो किसी तरह हम वहां जाकर रहेंगे. फंसते-फंसाते बचते-बचाते हमारी गाड़ी आधे रास्ते तय कर लिया. इसके बाद कीचड़ में फिर फंस गई, यह फंसने का दौर लंबे समय तक जारी रहा. आखिर में बाइक के जाने के लिए बिलकुल भी जगह नहीं थी, इसलिए हमें गाड़ी वहीं पर ही छोड़नी पड़ी.

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इसके बाद हम पैदल इस गजपल्ला वाटरफॉल को मोबाइल मैप से खोजते रहे, लेकिन यहां नेटवर्क की दिक्कत की वजह से लोकेशन दिखना पूरी तरह से बंद हो गया. घने जंगल में लोगों के पद चिन्हों को देखकर हम आगे बढ़ते रहे. पानी की आवाज सुनकर हम पहाड़ पर चढ़ गए, लेकिन वहां कोई झरना हमें दिखाई नहीं दी. पहाड़ पर चढ़ने पर एक छोटी सी धारा ही बहती नजर आ रही थी. यह देख हम परेशान हो गए. पहाड़ों पर हम एक घंटे तक भटकते रहे. थकान बढ़ती जा रही थी और शाम ढलती जा रही थी. वापस जाने की चिंता भी सता रही थी. देखते-देखते 6 बज गए. परेशान और मजबूर होकर हम वापस आने लगे.

लौटकर जब हम अपनी बाइक के पास आए तो दो व्यक्ति दिखाई दिए, तब हम खुशी से झूम उठे. ये लोग झरना से घूमकर वापस जा रहे थे. उनसे पूछने पर हमको गजपल्ला वाटरफॉल जाने का मार्ग बता दिया, उसने कहा कि इस नाले को पार कर पत्थर की दीवार के बगल-बगल और पेड़ों पर पीले रंग का निशान देखते-देखते जाएंगे. हमने ऐसा ही किया और बहुत संघर्ष के बाद फिर पहाड़ पर चढ़कर गजपल्ला वाटरफाॅल पहुंच ही गए. यहां पहुंचने के बाद प्रकृति का अनुपम दृश्य देखकर हमारी थकान दूर हो गई. हमने राहत की सांस ली. शाम होने के बाद भी यहां बहुत वक्त तक ठहरे रहे. हरियाली पहनकर मुस्कुराती झरने को निहारते रहे.

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शाम के बाद अब रात होने लगी. फिर हम वापस अपनी गाड़ी के पास आ गए. यहां आने पर हमें पेट्रोल की गंध आने लगी. हमने देखा की यह गंध हमारी मोटरसाइकिल से ही आ रही है और पेट्राेल पाइप भी खींची हुई है. अब घनघोर जंगल में रात के 7 बज चुके हैं और हमारी गाड़ी से पेट्रोल चोरी हो गया है. दूर-दूर तक कोई व्यक्ति या गांव नहीं और किसी से बात करने के लिए मोबाइल पर नेटवर्क नहीं. यह स्थिति देख धड़कन तेज हो गई. क्योंकि वापस जाने के लिए अब हमें बाइक को भारी दलदल पर धक्के मारते पैदल जाना होगा, ऐसा करते रात के 10-11 बज जाएंगे. यह सोच हम कांप गए. जब मैंने पेट्रोल की पाइप को ठीक कर गाड़ी चालू किया तो उसमें पेट्रोल का काटा थोड़ा बताया, यह देख ऐसा लगा जैसे मरते मरीज को ऑक्सीजन मिल गई हो. फिर हम पुन: फंसते-फंसाते रात करीब 8 बजे मेन रोड पर आए. इस प्रकार हमारी यात्रा खट्टी-मिट्ठी रही. हम इस सफर को जीवन भर भूल नहीं पाएंगे.

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