नई दिल्ली . नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने भारत के सबसे बड़े डार्कनेट एलएसडी कार्टेल ‘जम्बाडा कार्टेल’ गिरोह का भंडाफोड़ किया है. तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
इस कार्टेल का मास्टरमाइंड बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) का रहने वाला है, वहीं दो अन्य ग्राउंड ऑपरेटरों की भी पहचान हुई है. एजेंसी ने छापे के बाद 13,863 एलएसडी ब्लॉट्स, 428 ग्राम एमडीएमए और 26.73 लाख ड्रग मनी जब्त की है. बता दें, एनसीबी ने तीन महीने के भीतर डार्कनेट पर दो बड़े भारतीय एलएसडी कार्टेल को ध्वस्त किया है. इससे पहले जून में 15 हजार एलएसडी ब्लॉट्स को जब्त किया था. एनसीबी की दिल्ली क्षेत्रीय इकाई ने अब तक कुल 6 मामले दर्ज किए हैं. 22 को गिरफ्तार किया गया है. आरोपियों के पास से 29,013 एलएसडी ब्लॉट्स, 472 ग्राम एमडीएमए पाउडर और 51.38 लाख रुपये की ड्रग मनी जब्त की गई.
जांच में अहम खुलासे
जांच में पता चला कि विक्रेताओं और खरीदारों के बीच कोई मौखिक संचार नहीं किया गया. डार्कनेट पर सक्रिय एलएसडी कार्टेल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए एनसीबी ने तीन प्रमुख एलएसडी कार्टेल की पहचान की है, जिनका कारोबार देश भर में फैला हुआ था. जम्बाडा कार्टेल डार्कनेट पर एकमात्र भारतीय एलएसडी कार्टेल है, जिसे अवैध तस्करों और उपभोक्ताओ द्वारा 5 स्टार रेटिंग दी गई है.
पढ़े-लिखे लोग शामिल
इस गिरोह में शिक्षित युवा और तकनीक की समझ रखने वाले छात्रों की भागीदारी पाई गई. एनसीआर, हैदराबाद और बेंगलुरु के प्रोफेशनल मुख्य निशाने पर थे. इसके लिए वर्चुअल पहचान और क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग किया जा रहा था. ड्रग काकस में शामिल लोग सोशल मीडिया साइटों के माध्यम से संपर्क में थे.
27 देशों से समझौता
भारत ने ड्रग तस्करी रोकने के लिए अब तक 27 देशों के साथ समझौता किया है. इसमें यूएस,यूके सहित कई अन्य देश शामिल है. म्यांमार, बांग्लादेश सहित कई देशों के साथ ड्रग तस्करी और सुरक्षा से जुड़े अन्य समझौते भी किए गए हैं. ड्रग तस्करी का जाल कई देशों में फैला हुआ है.
क्या है एलएसडी
एलएसडी या लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड एक सिंथेटिक रसायन आधारित दवा है और इसे हेलुसीनोजेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसका दुरुपयोग युवाओं द्वारा किया जाता है और इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
डार्कनेट, जिसे डार्कनेट या डीप नेट भी कहा जाता है, इंटरनेट का एक एन्क्रिप्टेड हिस्सा है जिसे आमतौर पर सर्च इंजन द्वारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. यानी यह आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउजिंग के दायरे से परे है. डार्कनेट पर केवल चुनिंदा लोगों की ही पहुंच होती है और ऐसा दावा किया जाता है कि डार्कनेट का इस्तेमाल अवैध और आपराधिक कार्यों के लिए किया जाता है. डार्क वेब का इस्तेमाल मानव तस्करी, हथियारों की तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है.