रायपुर. धान की फसल विभिन्न प्रकार के रोग और कीटों से प्रभावित हो सकती है. इन रोगों और कीटों के कारण धान का उत्पादन कम हो सकता है और किसानों को नुकसान हो सकता है. धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड और तना छेदक, गुलाबी तना छेदक को रोकने का रामबाण इलाज आप भी कर सकते हैं. धान की फसल को बीमारियों और कीटों से संरक्षित रखने के लिए उचित कीटनाशकों का उपयोग करें, लेकिन सावधानी बरतें और केवल सामाजिक और प्रमाणित कीटनाशकों का उपयोग करें.

भूरी चित्ती

भूरी चित्ती रोग चावल की एक महत्वपूर्ण फसल में प्रमुख कीट रोग है, जिससे फसल का प्रदर्शन कम हो जाता है. इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं. अधिक संक्रमण होने पर ये धब्बे पत्तियों को सूखा देते हैं और बालियां पूरी तरह बाहर नहीं निकलती है. यह रोग धान में कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में अधिक प्रसारित होता है.

रोकथाम

इस रोग को रोकने के लिए बुवाई से पहले बीज को ट्राईसाइक्लेजोल दो ग्राम प्रति किग्रा दर से उपचारित किया जा सकता है. पुष्पन की अवस्था में जरूरत पड़ने पर कार्बेन्डाजिम का छिड़काव किया जा सकता है. रोग के लक्षण दिखाई देने पर, 10-20 दिन के अंतराल पर या बाली निकलते समय दो बार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15-20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी में घोल बना.

पर्णच्छाद अंगमारी

पर्णच्छाद अंगमारी रोग भी चावल के पौधों को प्रभावित करता है और उनके विकास को रोकता है. इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों पर दिखाई देते हैं.

रोकथाम

इस रोग को रोकने के लिए, संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है. बीज को थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा दर से उपचारित करके बुवाई की जा सकती है. जुलाई महीने में रोग के लक्षण दिखाई देने पर, मैकोजेब (0.24 प्रतिशत) का छिड़काव किया जा सकता है.

आभासी कंड

आभासी कंड रोग भी चावल की फफूंदीजनित रोग है और फसल को नुकसान पहुंचाता है. रोग के लक्षण पौधों में बालियों के निकलने के बाद ही स्पष्ट होते हैं. रोगग्रस्त दाने पीले से लेकर संतरे के रंग के हो जाते हैं, जो बाद में जैतूनी-काले रंग के गोलों में बदल जाते हैं.

रोकथाम

इस रोग को रोकने के लिए, फसल काटने के बाद अवशेषों को जला देना चाहिए और खेतों में अधिक जलभराव न होने देना चाहिए. रोग के लक्षण दिखाई देने पर, प्रोपेकोनेजोल 20 मिलीलीटर मात्रा को 15-20 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव किया जा सकता है.