पुष्पेंद्र सिंह, दंतेवाड़ा। माओवादियों की राजधानी अबूझमाड़ और उपराजधानी जगगुंडा भी उनके लिए महफूज नहीं है. भले ही माओवादी (Maoists) छुटपुट वारदातों को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हैं. बावजूद इसके जवान उनकी मांद में घुसकर चुनौती दे रहे हैं. फोर्स माओवादियों को चुनौती समर्पित जवानों के चलते और तीखे रूप में दे रही है. ये जावन कभी लाल सलाम के नारे लगाते थे, आज जय हिंद बोलकर धाबा बोल रहे हैं. हालांकि जवानों के लिए ये डगर बेहद कठिन है. कठिन इसलिए भी है क्योंकि दक्षिण बस्तर की भौगोलिक परिस्थतियां खुद जवानों को चुनौती देती, सीना तान के सामने खड़ी होती है.

कड़कड़ाती बिजली, मूसलाधार बारिश, उफनाते नालों और जहरीले जंतुओं को मात देते उनकी मांद में घुस रहे हैं. दक्षिण बस्तर में ऑपरेशन मानसून पिछले एक माह से लांच है. लालगलियारों में चैन से बैठे माओवादियों का जीना दुश्वार कर दिया है. बरसात माओवादियों के लिए महफूज मानी जाती है, गांव-गांव घूम कर संगठन को मजबूत करना इस दौरान काम होता है. यह काम माओवादी नहीं कर पा रहे हैं.

पुलिस अधिकारी कहते है कि बरसात में जंगल में जवानों का इस तरह से घूमना माओवादियों के लिए आफत बना हुआ है. जिस बरसात को माओवादी सुरक्षित मानते थे, अब दबिश दी जा रही है. यही वजह है माओवादी चैन से नहीं बैठ पा रहे हैं. जवान माओवादियों की उन्ही की भाष में जवान दे रहे हैं.

महिला कमांडो ने माओवादियों के दुष्प्रचार की कमर को तोड़ा

जवानों के ऑपरेशन और सर्चिंग के दौरान हमेशा बड़े ही संगीन आरोप लगते रहे हैं. इसका तोड़ भी पुलिस अधिकारियों ने निकाला है. माओवादियों के दबाव में ग्रामीणों के आरोप में जवानों को झेलने पड़ते थे. ये आरोप इतने संगीन होते थे कि नौकरी तक हासिए पर आ जाती थी. अब इस कॉलम पर पूर्णविराम लग चुका है. फोर्स पर अब लूटपाट और छेड़खानी जैसे आरोप कम ही सुनने में आते है. इन आरोपों के गिरावट के पीछे पुलिस अधिकारी महिला कमांडों के संयुक्त ऑपेरश को मानते हैं. जवानों के साथ महिला कमांडो भी ऑपरेशन पर जाती है. जंगल में महिला माओवादी की धरपकड़ और ग्रामीण महिलाओं से पूछताछ में महिला कमांडों ही आगे रहती है. माओवादी ग्रामीणों पर दबाव बना कर जो दुष्प्रचार करते थे, उसकी कमर टुट चुकी है. महिला कमांडो कंधे से कंधा मिलाकर माओवादियों को दबोच रही है और लड़ रही है.

तीन से पांच दिन का होता है जंगल में स्टे

ऑपरेशन लांच करना और उस पर नजर टिका कर अधिकारी बैठते है. बड़ी संख्या में जंगल में महिला कमांडो और जवानों को भेजना और उनका जब तक सुरक्षित वापस लौट कर न आना बड़ा चिंता का विषय रहता है. घनघोर जंगल में तीन से पांच दिन तक स्टे रहता है. इनपुट के आधार पर माओवादियों की मांद में घुसती है. ऑपरेशन मानसून हो या नॉर्मल समय का ऑपरेश इस दौरान मडिकल टीम भी साथ भेजी जाती है. जहरीले जंतुओं से बचाव के मिल मेडिसिन और इंजेक्शन रहते है. साथ ही मलेरिया की दवाईयां तो हर जवान को साथ ले जाना प्रथम प्राथमिकता है. इतना ही नहीं पुलिस अधिकारी इन जवानों की टोली के फंसने पर बैकअप पार्टी आस-पास ही तैयार करके रखते है. जिससे वे समय पर पहुंच सके.

फोर्स के दबाब का ही नतीजा है ये आंकड़ा

फोर्स के दबाव का ही नतीजा है कि जिले में बड़ी संख्या में माओवादियों ने समपर्ण किया है. इतना ही गिरफ्तारियां भी पुलिस ने की है. फोर्स का बढ़ता दबाव माओवादियों के लिए नासूर बनता जा रहा है. पुलिस रिकॉर्ड में 158 इनामी माओवादियों ने समर्पण किया है. कुल 611 समर्पण कर चुके है. इस बीच माओवादियों ने भी एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया. अरनुपर ब्लास्ट में 10 जवानों के साथ एक वाहन चालक भी शहीद हुआ है.

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