हैदराबाद। लोकप्रिय नक्सल तेलंगाना लोकगायक, कवि और कार्यकर्ता Gaddar का रविवार को खराब स्वास्थ्य के कारण हैदराबाद में निधन हो गया. 77 वर्षीय Gaddar का असली नाम गुम्मदी विट्ठल राव था, जिन्हें कई लोग ‘लोगों का गायक’ कहते थे.
70 के दशक से लेकर 90 के दशक तक नक्सलियों की आवाज रहे Gaddar ढलती उम्र के साथ भक्तिभाव में डूब गए थे. उनके निधन पर स्वामी रामानुजाचार्य के लिए गाए गीत शेयर किए जा रहे हैं. यह विरोधाभाष अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिला. आंध्रप्रदेश से तेलंगाना के अलग होने के पीछे Gaddar की आवाज भी एक बड़ी वजह बताया जाता है, लेकिन वे एक समय तेलंगाना को अलग राज्य होने के लिए संघर्ष करने वाली पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), जिसे वर्तमान में बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) के नाम से जाना जाता है. के खिलाफ वोट देने की अपील लोगों से करने लगे थे.
सिकंदराबाद के तूपरान में एक दलित परिवार में 1949 में जन्मे गुम्मदी विट्ठल राव उर्फ Gaddar ने अपने युवा दिनों की शुरुआत एक बैंक कर्मचारी के रूप में की, लेकिन बाद में 1980 के दशक की शुरुआत में क्रांतिकारी राजनीति की ओर – विशेष रूप से कोंडापल्ली सीतारमैय्या के नेतृत्व वाली सीपीआई (एमएल) के पीपुल्स वार ग्रुप की ओर आकर्षित हुए Gaddar ने बाद में पीपुल्स वार ग्रुप के सांस्कृतिक मोर्चा जन नाट्य मंडली (जेएनएम) की स्थापना की.
जेएनएम के लिए Gaddar गीतकार, गीतकार, गायक और नर्तक बने. अपने गानों के बीच-बीच में वह पीडब्लूजी विचारधारा और समसामयिक राजनीतिकरण पर बोलते रहते थे. यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जेएनएम के माध्यम से Gaddar तत्कालीन संयुक्त आंध्र प्रदेश और दंडकारण्य वन बेल्ट के कुछ हिस्सों में नक्सलवाद की आवाज बन गए. 1990 के दशक की शुरुआत में उन्हें “प्रजा युद्ध नौका” (जनता का युद्धपोत) के रूप में सम्मानित किया गया था. उनके मित्र उन्हें जन आंदोलनों का ‘तूफानी पेट्रेल’ कहते थे.
जानलेवा हमले में बाल-बाल बचे
Gaddar अप्रैल 1997 में एक जानलेवा हमले से बाल-बाल बचे थे, जब कुछ अज्ञात हमलावरों ने उन पर गोली चलाई थी. लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद वह ठीक हो गए, लेकिन उसके बाद उनकी काम की गति काफी धीमी हो गई. उस समय उन्होंने आरोप लगाया था कि उन पर हुए हमले के पीछे तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार थी. हालांकि, बाद में Gaddar ने 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान मेडचल में एक सार्वजनिक बैठक में नायडू के साथ मंच साझा किया.
क्रांतिकारी राजनीति से हुआ मोहभंग
राजनीति में Gaddar का यू टर्न भी उतना ही नाटकीय रहा. एक ऐसा दौर था जब कोई नहीं जानता था कि वह पीडब्ल्यूजी (जो बाद में सीपीआई (एमएल) माओवादियों में बदल गया) के साथ है या नहीं. हालांकि, इन वर्षों में, उन्होंने संकेत दिया कि उन्होंने क्रांतिकारी या भूमिगत राजनीति से दूर अपना स्वतंत्र मार्ग तैयार किया है.
बेटे के नाम से पार्टी बनाने की कवायद
बीते एक दशक से Gaddar ने घोषणा की थी कि वह अपने पुराने रुख को छोड़कर संसदीय राजनीति यानी चुनाव में शामिल हो रहे हैं. हाल ही में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की बैठकों में भाग लिया. उस मंच पर बैठे, जहां कुछ हफ्ते पहले प्रियंका गांधी ने हैदराबाद में एक रैली को संबोधित किया था. उन्होंने अपने बेटे सूर्य किरण के कांग्रेस में राजनीतिक प्रवेश को बढ़ावा दिया और उनके नाम पर एक नई पार्टी बनाने की भी कोशिश की.
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