पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद. किसानों ने अपने फसल को बचाने के लिए दिन रात मेहनत कर एक सफल प्रयास किया है. ये किसानों के परिश्रम की कहानी गरियाबंद जिले की है. यहां सुख रहे फसल को बचाने देवभोग में 7 गांव के 50 किसानों ने पहले नदी का रुख बदला, टूटे स्ट्रक्चर को रेत की बोरियों से ढका और तीन दिन की कड़ी मेहनत के बाद 1000 एकड़ को सींचने लायक पानी पहुंचाया. खरीफ में सूखे से निपटने करोड़ों की लागत से बनी 24 सिंचाई योजनाएं किसानों तक लाभ नहीं पहुंचा पा रही है.

किसानों के फसल पर अब अल्प वर्षा का खतरा मंडराने लगा है. बोनी के बाद खेतों में नजर आ रही दरार किसानों को डराने लगीं है, इस समय खेतों को पानी की भारी जरूरत है. इसी जरूरत को पूरा करने तेल नदी पार बसे 7 गांव के 50 किसानों की मेहनत रंग ले आई. इस इलाके में सिंचाई सुविधा देने तेल नदी जलप्लावन योजना बना हुआ है. 9 गांव के 600 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई के लिए 400 चेन यानी 12 किमी लंबी नहर भी बना हुआ है. लेकिन जलप्लावन के कुओं में तेल नदी का पानी नहीं आ रहा है. नहरों में भरे हुए रेत और जगह-जगह डेमेज हो चुके स्ट्रक्चर के कारण पानी अंतिम छोर तक भी नही पहुंच पा रहा था. ऐसे में दहीगांव, निष्टीगुड़ा, परेवापाली, सेनमुड़ा, सुपेबेडा, मोटरापारा के करीबन 50 किसानों ने तीन दिन पहले नहरों में पानी ले जाने का प्रण लिया.

किसान प्रवीन अवस्थी,विशु अवस्थी, सूर सिंह, बरपोटा,पंचम,थबीर मरकाम,परमेश्वर, भोजोराम ने बताया की पहले रेत ,बोरी और अन्य आवश्यक सामग्री के लिए आपस में चंदा जुटाया. फिर जलप्लावन में बने कुंए के आगे तेल नदी के बहते पानी को रोक कर कुएं की तरफ रुख किया. कुल्लू चलाकर केनाल में जमे रेत को बाहर निकाला, दाहिगाव के पास नहर के क्षतिग्रस्त स्ट्रक्चर को रेत की बोरियों भर जाम करने की कोशिश किया. जिसके बाद नहर का पानी परेवापाली तक पहुंच गया. देर रात तक अंतिम छोर सागुंनभाडी तक पहुंच जाएगा. किसान एक जुट होकर बारी-बारी से सभी खेतों में पानी भर रहे हैं. आज रात तक 1 हजार एकड़ को सींच लेने का दावा भी कर रहे हैं. रेत से भरे नहर व क्षतिग्रस्त स्ट्रक्चर को लेकर किसान में विभाग के प्रति आक्रोश है. किसानों ने बताया की 35 साल पुरानी इस योजना का सही फायदा अंतिम छोर में बसे 5 गांव को कभी नहीं मिला. आज पहली दफा किसानों के मेहनत से पानी अंतिम छोर तक पहुंच सकेगा.

पानी के अभाव में 40 फीसदी रोपा ब्यासी का काम रुका

वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी जे.एल नाग ने बताया की 25 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसल लिया गया है. 3 हजार में रोपा होना है. पिछले साल की तुलना में इस बार अब तक बारिश कम हुआ है. पिछले वर्ष अगस्त के पहले सप्ताह में 638 मिमी बारिश दर्ज थी,इस बार अब तक 418 मिमी दर्ज है. जिसके चलते 40 फीसदी रोपा बियासी का काम रुक गया है. कृषि अफसरों की माने तो कम बारिश के वजह से उत्पादन प्रभावित होगा.

सिंचाई योजना का हाल बेहाल

देवभोग सिंचाई अनुविभाग के अधीन 24 सिंचाई योजनाएं बनाई गई है. सभी योजनाएं वर्षा पर ही निर्भर हैं. रिकार्ड के मुताबिक इन योजनाओं से देवभोग और अमलीपदर तहसील के 80 गांव के 7004 हेक्टेयर सिंचाई सुविधा देने के अनुरूप रूपांकन किया गया. हैरानी की बात तो यह है की केवल वर्षा के जल पर आधारित इन योजनाओं में भाजपा सरकार के 15 साल में 150 किमी लंबी मुख्य और शाखा नहरों का जाल बिछा दिया गया. उन 15 साल में स्ट्रक्चर व नहर बनाने, इसी इलाके में 300 करोड़ रुपए पानी की तरह बहाया गया. तैयार सिंचाई योजनाओं की जल भराव क्षमता, जल आवक के स्रोत के अलावा अन्य तकनीकी विकल्प को दरकिनार किया गया. किसान के आड़ में कांट्रेक्टर को फायदा पहूचाने बड़े और ऊपर लेबल पर यह खेल खेला गया. सूखे और कम वर्षा की इन हालात में आज किसी भी योजना से सिंचाई लाभ किसानों को नहीं मिल पाना, योजनाओं की हकीकत बया कर रहा है.

मरम्मत के लिए 14 करोड़ बजट में शामिल

विभाग के एसडीओ दीपक पाठक ने कहा कूम्हडी घाट के तेल नदी जलप्लावन से सिंचाई सुविधा मिल रही थी. घूमरापदर जलाशय से भी पानी छोड़ा जा रहा है. कम बारिश के कारण टैंक व जलाशय में 20 फीसदी से कम भराव हुआ है.कई जलाशय तो नील है. आगामी दिनों में सिंचाई लाभ सुचारू रूप से दिया जा सके इसलिए आवश्यकता अनुसार 14 योजनाओं के नहर लाइनिंग,स्ट्रक्चर मरम्मत के लिए लगभग 40 करोड़ के कार्य का प्रपोजल राज्य सरकार ने बजट में शामिल किया गया है.

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