आज़ादी के दिन 15 अगस्त 1947 को एक आवाज़ गूंजी ”आज हम एक आज़ाद लोग हैं, एक आज़ाद मुल्क हैं. मैं आज जो आपसे बोल रहा हूं एक हैसियत , एक सरकारी हैसियत मुझे मिली है , जिसका असली नाम ये होना चाहिए कि मैं हिन्दुस्तान की जनता का प्रथम सेवक हूं. जिस हैसियत से मैं आपसे बोल रहा हूं ये हैसियत मुझे किसी बाहरी शख़्स ने नहीं दी , आपने दी है..’
ये विनम्र सम्बोधन था, देश के पहले प्रधान मंत्री नेहरूजी का अपनी जनता से , जो आकाशवाणी से प्रसारित हुआ था. सनद रहे, जहां तक लाल किले से नेहरूजी के भाषण का सवाल है लालकिले का वो पहला सम्बोधन 15 अगस्त को नहीं 16 अगस्त 1947 को हुआ था.

14 अगस्त 1947 की आधी रात को नेहरूजी ने भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर संसद भवन में भारतीय संविधान सभा में ” ट्रिस्ट विद डेस्टिनी ” जो भाषण दिया था वो दुनिया के महानतम भाषणों में शुमार है. ये पूरा भाषण हमेशा पढ़ा जाना चाहिए … दो पंक्तियां देखिये:
“हम सभी, चाहे हम किसी भी धर्म के हों, समान अधिकारों, विशेषाधिकारों और दायित्वों के साथ समान रूप से भारत की संतान हैं। हम सांप्रदायिकता या संकीर्णता को प्रोत्साहित नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी राष्ट्र महान नहीं हो सकता जिसके लोग विचार या कार्य में संकीर्ण हों.”
”हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की महत्वाकांक्षा हर आंख से हर आंसू पोंछने की रही है। यह हमारे से परे हो सकता है, लेकिन जब तक आँसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम ख़त्म नहीं होगा”

सुप्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह 14 अगस्त 1947 की उस रात संसद भवन में थे . उन्होंने लिखा है -” हम जैसे तैसे संसद भवन रात 11 बजे पहुँच गए . ठसाठस भीड़ थी पर अनुशासित और उत्साह से भरी हुई . बीच -बीच में जोर से नारे फूट पड़ते थे , ‘महात्मा गाँधी की जय , इंकलाब ज़िंदाबाद ‘. रात के 12 बजने से एक मिनट पहले भीड़ पर पूरी तरह सन्नाटा छा गया.’वन्दे मातरम् ‘ के सुरो में गाती हुई लाउड स्पीकरों से सुचेता कृपलानी की आवाज़ सुनाई पड़ी . इसके ठीक बाद पंडित नेहरू ने अपना स्मरणीय भाषण दिया ‘बहुत साल पहले हमने नियति से मुलाकात की थी …अब उस धरोहर को वापस लेने का वक़्त आ गया है …’ जैसे ही उनका भाषण समाप्त हुआ भीड़ ख़ुशी से पागल हो गयी और चिल्ला -चिल्ला कर नारे लगाने लगी’

आज़ाद हिन्दुस्तान में तिरंगा फहरते हुए देखने और अपने प्रिय नेता नेहरूजी को तिरंगा फहराते देखने -सुनने के लिए मानों पूरा देश 15 अगस्त के दिन उमड़ पड़ा था. इतिहास के पन्नों के साथ दर्ज़ ऐतिहासिक किस्सों को भी पढ़िए तो पता चलेगा कि सरकारी अनुमान था कि 15 अगस्त 1947 के दिन आज़ादी के उस समारोह में तीस हज़ार लोगों के शामिल होने का अनुमान था पर आये इस देश की तीस करोड़ आबादी में से पांच लाख से भी कहीं ज़्यादा लोग.

दिल्ली जन समुद्र में बदल चुकी थी. लोग लहरों के साथ अपने आप बढ़ते जा रहे थे . ”15 अगस्त को गवर्नर जनरल इंडिया गेट के पासउस मंच तक नहीं पहुंच सके, जहां से तिरंगा फहराया जाना था. तभी माउंटबेटन ने नेहरू को तेज आवाज लगाकर कहा कि वो तिरंगा फहरा दें. माउंटबेटन ने अपनी बग्घी पर खड़े होकर ही तिरंगे को अपनी सलामी दी ”
वैसे एक दिलचस्प बात भी दर्ज़ है जैसे ही तिरंगा झंडा फहराया गया उस वक़्त आकाश में इद्रधनुष चमकने लगा था .

ज़ाहिर है अगस्त का महीना था बारिश -धूप के बाद प्रकृतिक तौर पर बनता रहता है …पर उस दिन धार्मिक मान्यताओं को मानने वालों ने इसे दैवीय – चमत्कार माना था. ख़ैर , 15 अगस्त 1947 को नेहरू जी ने अपने उद्बोधन जो आकशवाणी से प्रसारित हुआ था ये भी कहा कि “आज़ादी महज़ एक सियासी चीज नहीं है. आज़ादी तभी एक ठीक पोशाक पहनती है जब उससे जनता को फायदा हो…”