नया साल हो या रामनवमी, रांची का प्राचीन तपोवन मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. इसे ‘मिनी अयोध्या’ भी कहते हैं, जहां श्री राम जानकी विराजमान हैं. लगभग 400 साल पुराने इस मंदिर का अयोध्या राम मंदिर की तर्ज पर 100 करोड़ की लागत से भव्य पुनर्निर्माण हो रहा है. ऋषि-मुनियों की यह तपस्थली अब दिव्य स्वरूप ले रही है. इसकी स्थापना एक अंग्रेज अफसर ने की थी. लेकिन एक अंग्रेज ने हिंदू शिव मंदिर की स्थापना क्यों की, इसको लेकर राजधानी में प्रचलित किंवदंती है. साथ ही तपोवन मंदिर में रामनवमी से जुड़ी भी एक मान्यता है. नए साल के पहले पहले दिन बड़ी संख्या में लोग धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए जाते हैं. झारखंड के रांची के निवारणपुर में अति प्राचीन तपोवन ‘मंदिर‘ स्थित है. लगभग 400 साल पुरानी रांची की तपोवन मंदिर, राम भक्तों के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र है.
तपोवन मंदिर के महंत “श्री ओम प्रकाश शरण जी महाराज” ने बताया कि तपोवन मंदिर का यह स्थान, तप की भूमि है. सैकड़ों सालों पहले ऋषि-मुनि यहां तप किया करते थे. नए भव्य मंदिर का निर्माण 100 करोड़ रुपयों की लागत से लगभग 14,000 वर्गफुट क्षेत्र में राजस्थान के प्रसिद्ध मकराना मार्बल का इस्तेमाल कर किया जा रहा है. इस दिन तपोवन मंदिर में रामनवमी को लेकर अखाड़ों में सुबह पूजा अर्चना के बाद विशाल महावीरी पताकाओं के साथ जुलूस निकाले जाते हैं. ढोल नगाड़ों की गूंज के बीच विभिन्न अखाड़ों के जुलूस एक दूसरे से मिलते हुए विशाल शोभा यात्रा के रूप में तपोवन मंदिर पहुंचते हैं.
महंत “श्री ओम प्रकाश शरण जी महाराज ने बताया कि राजधानी रांची के जिस स्थान पर आज श्री राम जानकी तपोवन मंदिर स्थापित है. प्राचीन काल में यहां जंगल हुआ करता था. इस स्थल पर ऋषि-मुनि तप और भगवान की भक्ति करने के लिए आते थे. इसी दौरान बाबा बकटेश्वर महाराज जी अपने तप में लीन रहते थे. उसी समय इस स्थान पर जंगली हिंसक जीव जंतु भी होते थे. एक अंग्रेज अफसर जंगली जानवरों का शिकार करने निकला था.
उसने जैसे ही देखा की बकटेश्वर महाराज जी के नजदीक एक शेर है और उन पर जानलेवा हमला न कर दे, उसने उस शेर को गोली मार दी, जिसके बाद वहां तप कर रहे बाबा हिंसा देख क्रोधित हो गए. बाबा ने जब बताया कि यहां कोई हिंसक जानवर किसी दूसरे पर हमला नहीं कर सकता. दरअसल, वहां बैठकर शेर बाबा के गाए जा रहे भजन को सुन रहा था.
इतना सुनते ही अंग्रेज अधिकारी को ग्लानि (Guilt) हुई और पश्चाताप करने लगा. इसके बाद ऋषि ने उस अफसर को प्रायश्चित करने के बजाय उपाय सुझाया. ऋषि ने उन्हें उसी स्थान पर शिव मंदिर की स्थापना का सुझाव दिया. इसके बाद ही उस अंग्रेज अधिकारी ने शिव मंदिर की स्थापना के लिए जमीन की खुदाई कराई थी. तभी उसी तपोवन क्षेत्र की जमीन के अंदर से श्री राम जानकी जी की मूर्ति खुदाई के क्रम में प्रकट हो गई, जिनके बाद ऐतिहासिक तपोवन परिसर में ही उन्हें अधिष्ठापित किया गया.
तपोवन मंदिर के महंत ओमप्रकाश शरण कहते हैं कि यह तप की भूमि है, जिसके गर्भ से सैकड़ों वर्ष पूर्व रामलला और माता सीता की मूर्ति मिली थी जो आज भी मौजूद है. इतना ही नहीं रातू महाराज के किला से हनुमानजी की मूर्ति भी पूर्वजों द्वारा लाई गई है. इसी तरह से अन्य देवी देवता भी यहां विराजते हैं जिसके कारण लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. यहां आनेवाले श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भी मन्नत लोग यहां मानते हैं वह जरूर पूरी होती है.
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