अभय मिश्रा, मऊगंज। मऊगंज जिले का हनुमना चेक पोस्ट इन दिनों भ्रष्टाचार का नया केंद्र बन चुका है। जिस ‘ट्रक-हैंगिंग’ वीडियो ने सुर्खियां बटोरीं, उसके पीछे का सच किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से भी ज्यादा हैरान करने वाला है। यह मामला सिर्फ एक दलाल के ट्रक पर लटकने का नहीं है, बल्कि यह कहानी है प्रतिदिन 10 लाख रुपये की अवैध वसूली की। हमारे पास मौजूद सबूत चीख-चीख कर कह रहे हैं कि कैसे ‘लिफ्ट’ मांगने के नाम पर ट्रक चालकों को फंसाया गया, जबकि असली खेल तो ‘बिल्टी’ और ‘एंट्री’ के नाम पर चल रही लूट का है।
हनुमना चेक पोस्ट पर मौत से खेलता यह शख्स राजकुमार गुप्ता, पुलिस की नजर में ‘पीड़ित’ हो सकता है, लेकिन हकीकत में यह उस सिंडिकेट का हिस्सा है जो सड़कों पर सरेआम वसूली करता है। Lalluram.com की पड़ताल में पता चला है कि जिस ट्रक चालक पर पुलिस ने संगीन धाराएं लाद दीं, वह असल में उस दलाली तंत्र का विरोध कर रहा था जो चेक पोस्ट पर हावी है।
हनुमना चेक पोस्ट के भ्रष्टाचार का गणित समझेंगे तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। इस रास्ते से रोजाना 1000 से भी अधिक गाड़ियां गुजरती हैं। छोटे वाहनों से 600, मंझोले से 2000 और बड़े ट्रकों से 5000 रुपये तक की अवैध वसूली की जा रही है। अगर औसत भी निकाला जाए, तो यहां हर दिन लगभग 10 लाख रुपये की काली कमाई दलालों और भ्रष्ट सिस्टम की जेब में जा रही है। यानी महीने का आंकड़ा करोड़ों में पहुंचता है।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे बिना वर्दी के लड़के, लाठी-डंडे और रसूख के दम पर ट्रकों को रोकते हैं। सूत्रों की मानें तो इन दलालों को प्रति वाहन 100 से 200 रुपये का कमीशन मिलता है, जबकि बाकी की मलाई चेक पोस्ट के अंदर बैठे सफेदपोश डकार जाते हैं। पूरी सड़क पर जाम का कारण यही ‘वसूली तंत्र’ है, जिसकी वजह से आम जनता भी परेशान है।
अब सबसे बड़ा सवाल मऊगंज पुलिस पर है। राजकुमार गुप्ता ने खुद कबूला है कि वह ‘दलाल’ है और ‘बिल्टी’ चेक करने के लिए ट्रक पर चढ़ा था। इसके बावजूद, पुलिस ने उसकी झूठी कहानी पर भरोसा कर ट्रक चालक के खिलाफ BNS की धारा 296(a), 115(2), 351(3) और 125 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। क्या पुलिस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि एक आम नागरिक को चलती गाड़ी पर लटक कर कागज चेक करने का अधिकार किसने दिया?
कलेक्टर संजय जैन और एसपी दिलीप सोनी की सख्ती के दावों के बीच, हनुमना चेक पोस्ट पर यह ‘समानांतर सरकार’ चल रही है। दलाल के कबूलनामे और 10 लाख रु से अधिक के प्रतिदिन की वसूली के आंकड़ों ने प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। क्या अब उन चेहरों पर कार्रवाई होगी जो वर्दी की आड़ में दलालों को संरक्षण दे रहे हैं? या फिर यह लूट का खेल यूं ही अनवरत जारी रहेगा?
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