हरदोई. जिले में कमाऊ बेटे की सड़क हादसे में मौत के बाद दंपती ने मुआवजे की लड़ाई मिलकर शुरू की थी, लेकिन पति की मौत के बाद वृद्धा बेटे के हक की लड़ाई लड़ने लगी. 14 साल की कागजी लड़ाई के बाद आखिरकार बेटे की मौत का मुआवजा पाने में वृद्धा कामयाब हो गई.

इस दौरान लगभग 100 तारीखों पर सुनवाई, हुई तो फाइल को कलेजे से लगाकर महिला तारीख पर पहुंचती रही. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के मामले में डीएम ने बतौर श्रमिक क्षतिपूर्ति आयुक्त मृतक की मां को हादसे की तारीख से भुगतान की तारीख तक छह प्रतिशत ब्याज सहित क्षतिपूर्ति के भुगतान का आदेश कर दिया.

इसके बाद बीमा कंपनी ने ब्याज सहित क्षतिपूर्ति के रूप में कुल 4,16,167 रुपये का भुगतान कर दिया है. सदर तहसील क्षेत्र के जिगनिया कटरा निवासी विपिन कुमार एक ट्रक पर काम करता था. ट्रक मालिक उसे दो हजार रुपये मासिक और सौ रुपये रोज खाने के लिए देता था.

विपिन की मौत

तीन जुलाई 2009 को फर्रूखाबाद से आलू लादकर ट्रक जा रहा था. भदोही के औराही थाना क्षेत्र के कोटरा के पास ट्रक का पिछला पहिया फट गया. ट्रक अनियंत्रित होकर पलट गया और घटना में विपिन की मौत हो गई. विपिन के पिता राम कुमार ने कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923 के तहत डीएम के न्यायालय में वाद दायर किया.

इसमें श्रमिक क्षतिपूर्ति दिलाने की मांग की गई थी. अब से तीन साल पहले राम कुमार की भी मौत हो गई. राम कुमार के साथ उसकी पत्नी रामदेवी भी तारीख पर आती थी. अक्षरज्ञान न होने के बाद भी उसे मामले के बारे में जानकारी हो गई थी. पति की मौत के बाद महिला ने मुआवजे के लिए लड़ाई जारी रखी.

भुगतान के आदेश पारित

डीएम एमपी सिंह ने बताया कि वादों को प्राथमिकता पर निपटाए जाने के क्रम इस पर प्रकरण पर साक्ष्य और दोनों पक्षों को सुना. रामदेवी का पक्ष साक्ष्यों में मजबूत रहा. बीमा कंपनी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के मंडलीय अधिकारियों को क्षतिपूर्ति राशि 2,26,380 रुपये पर हादसा की तिथि से छह प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान के आदेश पारित किए. बीमा कंपनी ने ब्याज सहित 4,16,167 रुपये का भुगतान कर दिया है.

तीन किलोमीटर चलती थी पैदल

रामदेवी से बीते 14 साल के संघर्ष के बारे में पूछा गया तो वह फफक पड़ी. फिर खुद को संभाला और मालिक (डीएम) के लिए दुआओं की झड़ी लगा दी. रामदेवी ने बताया कि पति राम कुमार जिंदा थे तो दोनों पैदल ही हर्रई पुल तक चले जाते थे. फिर बस मिल गई, तो ठीक नहीं तो टड़ियावां से बस पकड़कर हरदोई जाते थे.

रामदेवी का संघर्ष

पति मजदूरी करते थे. एक और बेटा सुरेश है. वह भी मजदूरी करता है. मजदूरी से इतना पैसा ही मिल पाता था, कि घर में खाना बन जाए. शहर जाने, पेशी करने भर के रुपये नहीं थे. शहर में आने पर कई तारीखों पर ऐसा हुआ जब पति के साथ भूखे ही रामदेवी वापस अपने घर चली गई. पति की मौत के बाद तो रामदेवी का संघर्ष और ज्यादा बढ़ गया.

बेटा चला गया हक नहीं मिला

रामदेवी तारीख पर आती थी और बेटा सुरेश मजदूरी करने जाता था. ऐसा इसलिए भी था कि अगर सुरेश मजदूरी करने नहीं गया, तो रात में चूल्हा जलना भी मुश्किल होगा. रामदेवी बताती हैं कि बेटा तो चला गया, लेकिन पता चला कि उसका हक नहीं मिला है. इसलिए लड़ाई लड़ी और मालिक ने जीत भी दिला दी.

बेटे को मिला न्याय

वह कहती है कि जैसे छोटे पर विपिन को कलेजे से लगाकर रखती थी वैसे ही उसके केस की फाइल को भी कलेजे से लगाकर रखा. एक कपड़े के झोले में कागज रखती थी और यह झोला अपने सिरहाने रखकर सोती थी. जब पति जीवित थे, तो वह इस झोले को एक बक्से में रखते थे. कुल मिलाकर मुआवजा मिलने से उसे लगता है कि बेटे को न्याय मिल गया.