नितिन नामदेव रायपुर. फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर असम के जादव पायेंग रायपुर पहुंचे हैं. उन्होंने लल्लूराम डॉट कॉम से खास बातचीत में अपनी पूरी कहानी बताई. उनका लक्ष्य है ग्रीन इंडिया बनाना. असम के जोरहट जिले के रहने वाले जादव पायेंग ने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे 1,360 एकड़ का जंगल खड़ा किया है. ऐसा करके उन्होंने न सिर्फ हजारों जंगली जानवरों को एक बसेरा दिया है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक अनोखी मिसाल कायम की है. वह अब तक 4 करोड़ से भी अधिक पौधे लगा चुके हैं, जो अब पेड़ बनकर जंगल का रूप ले लिया है. छत्तीसगढ़ सरकार आज प्रथम छत्तीसगढ़ हरित शिखर कार्यक्रम में जादव का सम्मान करने जा रही है.

फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से पहचान बना चुके जादव को साल 2015 में पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है. इसके अलावा उन्हें असम कृषि विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट PHD की उपाधि भी मिल चुकी है. लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत करते हुए फॉरेस्ट मैन जादव मोलई पायेंग ने कहा कि मैंने ठान लिया है कि खूब सारे पेड़-पौधे लगाएंगे और एक बड़ा जंगल बनाएंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि वह ज्यादा से ज्यादा वन्य जीवों को संरक्षित करना चाहते हैं. ये काम मेरे अकेले करने से नहीं होगा. मुझे प्रकृति से बेहद लगाव है.

बचपन से पौधा लगाने में जुटा है जादव

जादव ने कहा, ग्रीन इंडिया के लिए खुद को मैदान पर उतरना पड़ेगा. मेरा यह अनुभव हो चुका है. मेरा टाइम भी बहुत हो चुका है. बचपन से मैं पौधे लगाने में जुटा हूं. आज मुझे 65 वर्ष हो चुके हैं. फॉरेस्ट विभाग सहित पूरे देशभर में मैं अलग-अलग तरीके से कार्यक्रम में शामिल हो चुका हूं. देश के बाहर भी मुझे इसके लिए सम्मान दिया जा चुका है. पद्मश्री अवार्ड से मैं सम्मानित हूं. जिस स्टेट में जो पेड़ होते हैं वही प्लांटेशन मैंने किए हैं.

एजुकेशन से लाना होगा जागरूकता

उन्होंने कहा, पूरा ग्रीन इंडिया तभी होगा जब स्कूल, कॉलेज, इंडस्ट्रीज पौधे लगाएंगे. जितने भी स्टूडेंट हैं वह अपने बर्थडे पर एक पौधे लगाए तो जल्द से जल्द इंडिया ग्रीन हो जाएगा. हम लोग गलती करते हैं. हमारे बच्चे गलती नहीं किए हैं. उन लोगों को सिखाया नहीं है. एजुकेशन सिस्टम में धरती मां को प्यार करना इंडिया में भी नहीं है. अलग-अलग वर्ल्ड में भी नहीं है. उसको लेकर अब जागरूकता लाई जा रही है. पूरे देश को मैं यही मैसेज देना चाहता हूं कि सभी लोगों को जन्मदिन पर एक पौधा लगाना होगा तभी जल्द ग्रीन इंडिया होगा.

जानिए पूरी कहानी

साल 1979 में असम में आई भयंकर बाढ़ ने उनके जन्म स्थान के आसपास बड़ी तबाही मचाई थी। बाढ़ का ही असर था कि आसपास की पूरी जमीन पर सिर्फ मिट्टी और कीचड़ दिखता था। साधारण से दिखने वाले जादव ने अकेले उस खाली जमीन को घने जंगल में बदल दिया। यह सब तब शुरू हुआ जब एक दिन जादव ब्रह्मपुत्र नदी स्थित द्वीप अरुणा सपोरी लौट रहे थे। उस समय जाधव ने बालिगांव जगन्नाथ बरुआ आर्य विद्यालय से कक्षा 10वीं की परीक्षा दी थी। रेतीली और सूनसान जमीन में सैकड़ों सांपों को बेजान मरता देख वह चौंक गए।

एक दिन जादव ने आसपास के बड़े लोगों से पूछा, ‘अगर इन्हीं सांपों की तरह एक दिन हम सब मर गए तो वे क्या करेंगे?’ उनकी इस बात पर सभी बड़े-बुजुर्ग लोग हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे, लेकिन जादव जानते थे कि उन्हें इस भूमि को हरा-भरा बनाना है। अप्रैल 1979 में इस तबाही को देख जादव ने (जब वह महज 16 साल के थे) मिट्टी और कीचड़ से भरे द्वीप को एक नया जीवन देने के बारे में ठान लिया। इस बारे में जादव ने गांव वालों से बात की। गांव वालों ने उन्हें पेड़ उगाने की सलाह के साथ-साथ 50 बीज और 25 बांस के पौधे दिए।

जादव ने बीज बोए और उनकी देखरेख की। उसी का परिणाम है कि आज 36 साल बाद उन्होंने अपने दम पर एक जंगल खड़ा कर दिया। जोराहाट में कोकिलामुख के पास स्थित जंगल का नाम मोलाई फॉरेस्ट उन्हीं के नाम पर पड़ा। इसमें जंगल के आसपास का 1360 एकड़ का क्षेत्र शामिल है। हालांकि इस जंगल को बनाना आसान नहीं था। जादव दिन-रात पौधों में पानी देते। यहां तक कि उन्होंने गांव से लाल चींटियां इकठ्ठी कर उन्हें सैंड बार (कीचड़) में छोड़ा। अंत में उन्हें प्रकृति से उपहार मिला और जल्द ही खाली पड़ी जगह पर वनस्पति और जीव-जंतुओं की कई श्रेणियां पाई जाने लगीं। इनमें लुप्त होने की कगार पर खड़े एक सींग वाले गैंडे और रॉयल बंगाल टाइगर भी शामिल हैं।

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