रायपुर. कवर्धा के बोड़ला से देर रात प्रशासन ने सालों से गरीबों के चावल चोरी करने की साज़िश का भंडाफोड़ किया है. प्रशासन ने बोड़ला के आशा फ्यूल्स के पास खड़े ट्रकों पर छापा मारकर करीब 27 हज़ार किलो चावल से लदी तीन गाड़ियों को जब्त कर लिया है. प्रशासन ने बोड़ला के वेयर हाऊस को सील कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि 2012 से ये खेल चल रहा था. शुरुआती पुछताछ में पता चला है कि दूरदराज़ के ज़्यादातर राशन दुकानों से यही खेल चल रहा है.

ये चावल पीडीएस के तहत गरीबों को बांटे जाने थे. लेकिन उससे पहले ही इसकी हेराफेरी की जा रही थी.शुरुआती जांच में पाया गया है कि छापा मारने से पहले करीब 60 क्विंटल गरीबों के चावल पर डाका डाला जा चुका था.

प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक बाकी गाड़ियों से चावल चोरी करने की तैयारी चल रही थी. अफरातफरी का भंडाफोड़ होने के बाद पूरे इलाके में हड़कंप मच गया. सूत्रों के मुताबिक प्रशासनिक अधिकारियों को रात से नेताओं के ट्रकों को छोड़ने के लिए फोन आने लगे.

ये गाड़ियां वेयर हाऊस से बोलड़ा के आदिवासी बहुल राशन दुकानों में चावल की सप्लाई करने निकली थीं. लेकिन बोलड़ा के ही आशा फ्यूल्स के पास ही चावल उतारकर दूसरी गाड़ी में अफरा तफरी करने लगी. प्रशासन ने वेयर हाऊस को भी सील कर दिया है. जबकि तीन गाड़ियों को जब्त करके थाने भेज दिया गया है. मामले की जांच की जा रही है. गाड़ियां त्रिलोचन सिंह नाम के व्यक्ति की हैं.

दरअसल, जिला प्रशासन को लंबे समय से सूचना मिल रही थी कि बोलडा के ग्रामीण इलाकों में राशन दुकानों में जाने वाला चावल पहुंचने से पहले ही आधा आशा फ्यूल्स के पास अफरा-तफरी करके गायब कर दिया जाता है. प्रशासन ने इस सूचना के आधार पर मुखबिरों को मुस्तैद किया. मुखबिर ने देर रात को जिला प्रशासन को सूचित किया कि वेयर हाऊस से निकली तीन गाड़ियां आशा फ्यूल्स के पास खड़ी हैं उसमें से एक गाड़ी में से चावल को निकालकर एक दूसरी गाड़ी स्वराज माजदा में भरा जा रही है.

जिला प्रशासन जब तक पहुंचती, स्वराज माजदा वहां से फरार हो चुकी थी. जिस गाड़ी से चावल चुराया गया था- वो भी वहां से प्रशासनिक अधिकारियों को देख भागने लगा. जिसे पीछा करके पकड़ा गया. इस गाड़ी में 60 क्विंटल चावल कम मिला है. जबकि बाकी दो गाड़ियों को मिलाकर कुल 27 हज़ार किलो चावल वहां था. नियम के मुताबिक सूर्यास्त के बाद चावल की गाड़ियां रवाना नहीं हो सकतीं.

जानकारी के मुताबिक जब प्रशासन पहुंचा तो उस वक्त एक गाड़ी का माल उतारा जा चुका था. वहीं बाकी गाड़ियां खड़ी थीं. जिनके नंबर उस गाड़ी के बाद आते. बताया जा रहा है कि ये खेल 2012 से चल रहा है. गाड़ी के लदे चावल को आदिवासी इलाकों के राशन दुकानों के लिए जा रहा था.

बताया जा रहा है कि आदिवासी इलाकों में चावल कम बांटा जाता था. इसमें दुकानदारों की भी मिलीभगत की आशंका जताई जा रही थी. जिन दुकानों में चावल बंटने थे- उनमें से दो दुकानें स्वंसहायता समूह की महिलाएं चलाती हैं जबकि एक राशन दुकान विभाग चला रहा है.