दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi Highcourt)के एक महत्वपूर्ण निर्णय ने लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती दी है कि महिलाएं ‘पति की संपत्ति’ होती हैं. कोर्ट ने विवाहेतर संबंध के एक मामले में आरोपी पुरुष को बरी करते हुए भारतीय समाज की सोच पर गंभीर सवाल उठाए. इसके साथ ही, महाभारत के द्रौपदी प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे सभ्यता के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी के रूप में प्रस्तुत किया.

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जस्टिस गिरीश कठपाड़िया की पीठ ने इस मामले में वादी पति के पक्ष में निर्णय दिया है. पीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें फैमिली कोर्ट ने पति को हर महीने अपनी पत्नी को दस हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. पति ने इस निचली अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

यह घटना तब उत्पन्न हुई जब एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर विवाहेतर संबंध रखने का आरोप लगाया और उसकी प्रेमिका के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (व्यभिचार) के तहत कानूनी कार्रवाई की.

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क्या था पति का दावा?

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी और आरोपी ने लखनऊ के एक होटल में ‘पति-पत्नी’ की तरह ठहरकर बिना उसकी अनुमति के संबंध बनाए. जब पति ने पत्नी से इस बारे में बात की, तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि उसे कोई समस्या है, तो वह रिश्ता समाप्त कर सकता है. हालांकि, मजिस्ट्रेट ने आरोपी को पहले ही बरी कर दिया था, लेकिन पति ने इस निर्णय को सेशन कोर्ट में चुनौती दी, जिसने आरोपी को फिर से समन जारी किया. अंततः यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया.

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने क्या कहा?

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने अपने निर्णय में न केवल कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया, बल्कि एक महत्वपूर्ण सामाजिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया. उन्होंने अपने फैसले में उल्लेख किया कि पत्नी को पति की संपत्ति मानने की धारणा ने हमारे इतिहास को अत्यधिक रक्तरंजित किया है. महाभारत इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें युधिष्ठिर ने द्रौपदी को जुए में दांव पर लगाया और अन्य भाई चुप्पी साधे रहे. द्रौपदी की पीड़ा, उसका अपमान और उसकी चुप्पी आज भी हमें गहराई से प्रभावित करती है. अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ शाइन बनाम भारत सरकार मामले में धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करते हुए यह स्पष्ट किया था कि महिलाएं अपनी इच्छाओं और स्वतंत्रता की स्वामिनी हैं, न कि पति की संपत्ति.

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अंतरिम गुजारा भत्ता देना उचित नहीं : पति की चुनौती याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रारंभिक साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि प्रतिवादी पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध है. हालांकि, अंतिम निर्णय अदालत द्वारा ही लिया जाएगा, लेकिन पति द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध है. इस स्थिति में पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता प्रदान करना उचित नहीं होगा. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार, यदि पत्नी का किसी अन्य पुरुष के साथ शारीरिक संबंध है, तो वह पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी. इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि इस मामले में उपलब्ध साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि पत्नी के अन्य पुरुष के साथ अनैतिक संबंध हैं.

‘सिर्फ साथ रहना, संबंध का प्रमाण नहीं’

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक ही होटल के कमरे में रात बिताने को केवल शारीरिक संबंध के रूप में मान लेना, कानून को सरल बनाना और महिला की स्वतंत्रता का अपमान करना है.

कानूनी और सामाजिक क्रांति की दस्तक

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जो मानसिकता द्रौपदी को चुप करा गई, वही आज भी अनेक महिलाओं को न्याय से वंचित रखती है. जस्टिस नीना बंसल ने यह भी कहा कि इतिहास की दुखद घटनाएँ हमें दोहराने के लिए नहीं, बल्कि सुधारने के लिए सीख देती हैं.