देहरादून. आधार कार्ड की भले ही खूब आलोचना हो रही हो लेकिन आधार लोगों के कितने काम की चीज है ये उन लोगों से पूछिए जिनकी जिदंगी में एक अदद आधार कार्ड से खुशियां वापस लौट आती हैं.
उत्तराखंड के कुमायूं के चंपावत के चौड़ापिता गांव की लक्ष्मी देवी के दो बेटे हैं. उनका बड़ा बेटा प्रेम सिंह अपने चाचा प्रताप सिंह के घर चम्पावत में रहकर पढ़ाई कर रहा था. 2005 में वह 12हवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद चाचा के घर से लापता हो गया. घरवालों ने इस बारे में पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई. घरवालों ने प्रेम की काफी खोजबीन की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला.
अचानक दिसंबर 2017 में लक्ष्मी देवी के घर डाक से आधार कार्ड पहुंचा जिसमें प्रेम सिंह की फोटो औऱ नाम दर्ज था. इस आधार कार्ड से लक्ष्मी देवी को उम्मीद बंधी कि वे अपने बेटे को तलाश सकती हैं. उन्होंने गांव के ही सुरेंद्र सिंह से इस बारे में बात की तो उन्होंने पुलिस अधीक्षक से प्रेम को तलाशने के लिए गुहार लगाई. एसपी के आदेश के बाद स्थानीय पुलिस ने उस आधार कार्ड पर दर्ज नंबर को सर्विलांस पर लगाकर खोजबीन शुरु कर दी. पुलिस की कोशिशें रंग लाई औऱ प्रेम सिंह के नंबर के आधार पर पुलिस को पता चला कि वह जयपुर में है. पुलिस जयपुर पहुंचकर प्रेम सिंह को वापस उसकी मां से मिलाने के लिए चंपावत पहुंच रही है. जहां मां-बेटे का 13 साल बाद मिलन हो सकेगा. प्रेम सिंह की मां लक्ष्मी देवी अपने बेटे से 13 साल बाद मिलने के लिए आधार कार्ड को ही क्रेडिट देती हैं.
ऐसे वक्त में जब आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर ढेर सारे सवाल जवाब किए जा रहे हैं. इस किस्म की घटनाएं यही बताती हैं कि आधार किस तरह से बिछड़ों को मिलाने में कारगर हो जाता है.