PM-CM Remove Bill: PM-CM हटाने वाला बिल (पीएम, सीएम और मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद पद से हटाने वाले विधेयक) की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी दूरी बनाने का फैसला कर लिया है। JPC टीम से पहले ही सपा (SP) और टाएमसी (TMC) ने दूरी बनाने का ऐलान किया था। अब आम आदमी पार्टी (आप) ने भी संयुक्त संसदीय समिति से किनारा कर लिया है। प्रमुख सहयोगियों के अलग होने से अब पूरा दारोमदार कांग्रेस के कंधे पर आ गया है। साथ ही विपक्षी एकजुटता बनाए रखने का दबाव और बढ़ गया है।

बता दें कि संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को लेकर विपक्षी पार्टियां किनारा कर रही हैं। पहले तृणमूल कांग्रेस ने इस समिति को ‘नौटंकी’ बताते हुए बहिष्कार किया। इसके बाद समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया कि उनकी पार्टी JPC में शामिल नहीं होगी। अब आम आदमी पार्टी ने भी यही रुख अपनाया है।

ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली टीएमसी और अखिलेष यादव की नेतृत्व वाली सपा के किनारा करने पर कांग्रेस पर विपक्षी एकजुटता के नाम पर अपनी लाइन बदलने का दबाव बढ़ गया है। दरअसल, कांग्रेस अब तक इस पैनल का हिस्सा बनने के पक्ष में दिखाई दे रही थी, लेकिन टीएमसी के बाद सपा और AAP के कदम ने कांग्रेस हाईकमान को भी असमंजस में डाल दिया है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी का मानना है कि संसदीय समितियों की कार्यवाही अदालतों में महत्व रखती है और विवादित विधेयकों पर जनमत को प्रभावित करती है। हालांकि बायकॉट ने विपक्षी समीकरण बदल दिए हैं। अब कांग्रेस के भीतर ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या पार्टी नेतृत्व विपक्ष की एकता को प्राथमिकता देगा या फिर अपनी पुरानी लाइन पर टिका रहेगा।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि वो इस मुद्दे पर ममता बनर्जी और टीएमसी के साथ खड़े हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब खुद गृह मंत्री अमित शाह यह कह चुके हैं कि उन्हें कई मामलों में झूठा फंसाया गया था तो फिर यह बिल किस आधार पर लाया गया है? अखिलेश का तर्क है कि इस प्रावधान के जरिए किसी भी नेता को फर्जी मामलों में फंसाकर पद से हटाया जा सकता है। उन्होंने आजम खान, रामाकांत यादव और इरफान सोलंकी जैसे अपने नेताओं का उदाहरण भी दिया, जिन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा था। अखिलेश ने यह भी कहा कि यह कानून संघीय ढांचे के खिलाफ है।

टीएमसी ने कहा- सरकार की नौटंकी

टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने इस JPC को पूरी तरह से ‘नौटंकी’ बताया है। उनका कहना है कि मोदी सरकार जानबूझकर ऐसे मुद्दों को हवा दे रही है ताकि असली सवालों से ध्यान भटकाया जा सके। ओ’ब्रायन ने कहा कि पहले JPC का गठन जनता के प्रति जवाबदेही तय करने के लिए किया जाता था, लेकिन 2014 के बाद से इन्हें सिर्फ राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। ओ’ब्रायन ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि टीएमसी और सपा ने जेपीसी में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के चेयरमैन मिलकर जेपीसी के अध्यक्ष का चयन करते हैं और सदस्यों का नामांकन पार्टी की संख्या के आधार पर होता है। इससे समिति का झुकाव सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में हो जाता है।

विधेयक में क्या है?

20 अगस्त को लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 पेश किए गए। इनका मकसद यह प्रावधान करना है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। इन विधेयकों की समीक्षा के लिए बनाई गई JPC में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद शामिल हैं. समिति को शीतकालीन सत्र में अपनी रिपोर्ट पेश करनी है।

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