राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। 12 साल में 9 बार गर्भपात झेल चुकी मां अमृता की राजधानी भोपाल के सरकारी अस्पताल काटजू में आखिरकार गोद भर ही गई। अमृता ने प्राइवेट अस्पतालों में कई महंगे इलाज करवाए इसके बावजूद भी कोई फायदा नहीं हुआ। वही इलाज के बाद बच्चे कुछ महीने पेट में ठहरते और फिर गर्भपात हो जाता है। इसी दौरान काटजू के चिकित्सकों ने ये बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

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इसलिए होता था गर्भपात

मां के आरएच नेगेटिव होने और गर्भस्थ शिशु के आरएच पॉजिटिव होने के कारण शरीर में एंटीबॉडीज बनने से गर्भ नहीं ठहर पाता था। सेंटर फॉर प्रीवेंटिव गायनेकोलॉजी एंड इनफर्टिलिटी में इलाज के दौरान पता चला कि मां के ब्लड के एंटीबॉडीज बच्चों के रेड ब्लड सेल्स को खत्म कर रही थी। काटजू अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रचना दुबे ने बताया कि, यह दुर्लभ केस था। जांच में गड़बड़ी का पता चला तो इलाज के बाद महिला की सफल डिलीवरी कराई गई। अब जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। उन्होंने बताया कि आईएस नेगेटिव प्रेगनेंसी के साथ महिला को बच्चेदानी का मुंह छोटा था। इसलिए गर्भ में जब बच्चा 3 माह का हुआ तो बच्चेदानी के मुंह में टांके लगाए, जिससे गर्भपात ना हो। इसके साथ ही एंटीबॉडीज को रोकने के लिए एंटी इंजेक्शन लगाए।

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बतादें कि, यदि महिला आईएस नेगेटिव (एबीयाओ) है और बच्चा आरएच पॉजिटिव है, तो उसे आरएच नेगेटिव प्रेगनेंसी कहते हैं। इस स्थिति में समस्या तब बनती है जब मां इम्यून सिस्टम बच्चे के ब्लड में आरएच फैक्टर को बाहरी पदार्थ के रूप में समझता है। ऐसे में यह बच्चे की रेड ब्लड सेल्स पर हमला करने के लिए एंटीबॉडी बनने लगता है। जिससे गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाती है।

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