सत्यपाल सिंह,रायपुर। नक्सल हिंसा से प्रभावित छत्तीसगढ़ के बस्तर का अबूझमाड़. इसका नाम सुनते ही जेहन में गोलियों की आवाज और खून से सनी सड़कें नजर आती है. यहां नक्सलियों का खौफ देखने मिलता है. आज भी यहां आदिवासी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. सुधिवाएं नहीं मिलने की खबरें कई जगहों से आती है. लेकिन आज हम आपको जो बताने जा रहे उस जानकारी बहुत कम ही लोग रूबरू होंगे. अबूझमाड़ में विकास की बात तो दूर भारत की नागरिकता का कोई पहचान नहीं है. नक्सा खसरा भी नहीं है. सर्वे से ही बाहर है. सरकार की कोई योजना का लाभ नहीं मिलता है. ये हाल एक दो गांव का नहीं, बल्कि पूरे तीन सौ गांव का है. अबूझमाड़ के जंगल में 50 हजार से अधिक आदिवासी बिना पहचान के रह रहे हैं. मुगल शासन, ब्रिटिश सरकार और अन्य सरकारें सर्वेक्षण कराने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाबी हाथ लगी. अब भूपेश सरकार अबूझमाड़ जंगल का सर्वे करा रही है.

देश के आजादी के 72 साल हो गए. फिर भी भारत सरकार अबूझमाड़ के जंगल का सर्वेक्षण नहीं करा पाई. मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 1 नवंबर सन् 2000 में अलग राज्य बना. तत्कालीन बीजेपी की सरकार ने सर्वक्षण कराने का प्रयास किया, लेकिन वो भी असफल रही. टेक्नोलॉजी का दौर है. कॉपी पेन छोड़ बच्चे कम्प्यूटर से ज्ञान अर्जित कर रहे हैं. टेक्नोलॉजी ऐसी की आज के दौर में कोई भी काम असंभव नहीं है. लोग चांद पर पहुंच गए है, लेकिन अबूझमाड़ के जंगल तक नहीं पा रहे हैं. इसका मतलब ये सरकारों की नाकामी ही है.

छत्तीसगढ़ के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार 50 हजार से ज्यादा बांसीदा वाले अबूझमाड़ के जंगल में करीब 300 गांव का सर्वे करने वाली है. जिसकी तैयारी पूरी कर ली गई है. उन्होंने इस नाकामी को बीजेपी के सर मढ़ दिया और कहा कि न जाने क्यों पूर्व बीजेपी सरकार ने ऐसा अनदेखा किया औऱ सर्वे नहीं करा सकी. आज प्रदेश कई जिलों में यही स्थिति है, जहां कई गांव सर्वे से बाहर है. जिनको सरकारी योजनाओं का लाभ तो दूर अपने निवास का पहचान नहीं है. उपचुनाव के बाद सर्वेक्षण का काम शुरु हो सकता है.

बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले से लेकर दंतेवाड़ा, बीजापुर और महाराष्ट्र की सीमा तक 4400 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप अबूझ ही है. घने जंगलों, पहाड़ों, नदी-नालों से घिरे अबूझमाड़ में आज भी आदिम सभ्यता जीवित है. अबूझमाड़ का जंगल ऐसा कि यदि कोई अंदर घुस जाए, तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि वहां घुसेगा कौन ? जंगल में जाना ही संभव नहीं है. टेक्नोलॉजी भी वहां कोई काम नहीं करेगा ? न ही वहां हेलीकॉप्टर जंगल के ऊपर उड़ सकता और न ही कोई ड्रोन कैमरा उठाया जा सकता है. तो अमूझमाड़ का सर्वेक्षण होगा कैसे ? राज्य सरकार की पहल तो अच्छी है, लेकिन इस ओर काम होगा कैसे ?

बता दें कि मुगल शासन में अकबर शासन के काल में अबूझगमाड़ के लिए भूमि सर्वेक्षण कराया था लेकिन वह पूरा नहीं कराया जा सका. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भी वर्ष 1908 में प्रयास किया था, लेकिन वो भी असफल रहे. राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने इसरो और आइआइटी रुड़की के सहयोग से हवाई सर्वेक्षण कराया था, लेकिन नक्सली खतरे के कारण जमीन पर सर्वे नहीं हो सका. तीन वर्ष पहले अबूझमाड़ के बाहरी इलाके के गांवों तक ही राजस्व की टीमें पहुंच पाई हैं. इसी बीच विरोध भी शुरू हो गया है.