पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। कलेक्टर के अनुमोदन बगैर 5 करोड़ 26 लाख रुपये के अनुपयोगी सामग्री खरीदी मामले में शिक्षा विभाग ने DEO के बाद अब तत्कालीन लेखापाल को भी निलंबित किया गया है. माह भर पहले तत्कालीन डीईओ भोपाल टांडेय को निलंबित किया जा चुका है. मामले में आपराधिक कार्यवाही भी जल्द होगी.

दरअसल, भरे कोरोना काल में गरियाबंद शिक्षा विभाग ने मोटे कमीशन खोरी के चक्कर मे अधोसरंचना मद का भारी दुरुपयोग करने की पूरी तैयारी कर लिया था. विभाग ने 25 अगस्त 2020 को कोरबा के फर्म लक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क को 1 करोड़ 99 लाख लागत के 1400 नग राइटिंग बोर्ड( व्हाइट बोर्ड) और 14/09/2020 को 3 करोड़ 27 लाख 22 हजार की लागत के 4287 सेट फायर एस्टिंग यूजर का वर्क आर्डर जारी कर दिया गया था.

भारी भरकम रुपये के खर्च कर सामाग्री डंप

जारी आदेश के बाद बकायदा जिले में सामग्री भी डंप कर दिया गया था, लेकिन इस भारी भरकम रुपये के खर्च के लिए जिला प्रशासनिक मुखिया का लिखित अनुमोदन नहीं लिया गया था. सामग्री सप्लाई के बाद फर्मों को भुगतान नहीं हुआ तो फर्म ने मामले में याचिका हाई कोर्ट में दायर कर दिया.

कोर्ट ने शासन को जवाब मांगा, तब मामले की जांच शुरू हुई

साल भर तके चले जांच के बाद मामले के दोषी तत्कालीन डीईओ भोपाल टांडेय को माह भर पहले संचालक शिक्षा विभाग ने निलंबित कर दिया था, लेकिन इस मामले में प्रकरण प्रस्तुतकर्ता साखा प्रभारी सुनील कुमार प्रधान भी दोषी पाया गया, जिसे डीईओ डीएस चौहान ने 23 दिसम्बर को आदेश जारी कर निलंबित कर दिया था.

मामले से जुड़े वित्तीय शाखा के लेखापाल भी कार्रवाई के जद आ गए हैं. बताया जा रहा है कि जल्द उन पर भी कार्रवाई की गाज गिरेगी. बताया जा रहा है कि कोर्ट के संज्ञान के बाद मामले को आपराधिक माना गया है. मामले में संलिप्त अफसर बाबुओं पर आपराधिक कार्रवाई भी होनी है.

कलेक्टर बदले तो भुगतान रुका

कलेक्टर सीएस डहरिया के कार्यकाल में इस गड़बड़ी की पटकथा लिखी गई थी. सामग्री अनुपयोगी थे. इसलिए लिखित अनुमोदन कलेक्टर ने नहीं दिया था. मौखिक और मौन स्वीकृति के दम पर भारी भरकम रकम को खपाने आधी अधूरी फाइल चलाई गई थी.

डाहरे सेवा निवृत्त हुए, डीईओ की कुर्सी भी बदल गई थी

सप्लाई के बाद भुगतान का पेंच तत्कालीन कलेक्टर नम्रता गांधी की टेबल में जा फंसी. भुगतान के पहले गांधी ने परीक्षण कराया तो इस बड़ी खरीदी के लिए अनुमोदन ही नहीं किया गया था. तब तक अधोसरंचना की राशि सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मनन्द स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर और फर्नीचर में उपयोग कर दिया गया था. भुगतान लटकते ही फर्म के मालिकों ने शिक्षा विभाग के वर्क आर्डर के आधार पर कोर्ट में याचिका दाखिल कर दिया.

कमीशन का था खेला

सूत्रों के मुताबिक कोरोना काल में शिक्षा विभाग द्वारा की गई इस डील में खर्च हो रहे कुल रकम का अधिकतम 50 फीसदी कमीशन का खेल था. सप्लाई किए गए सामग्री के दर और उसके बाजार के वास्तविक दर में भारी अंतर थे. शिक्षा विभाग में पिछले 3 साल में इसी तरह फर्नीचर के अलावा स्वच्छता सामग्री, खेल सामग्री की खरीदी विभिन्न मदों से लगातार हो रही है.

भाजपा आरटीआई प्रकोष्ठ के पदाधिकारी प्रीतम सिन्हा ने कहा कि मामले में कई पत्र लगाए गए हैं. जवाब आना बाकी है. मामले की जांच हुई तो कैसे सरकारी खजाने का चूना लगाया गया है, उसका खुलासा हो जाएगा. प्रीतम ने कहा कि खरीदी फनीर्चर का भौतिक सत्यापन और गुणवत्ता जांच की मांग जल्द करेंगे.

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