रायपुर। आज के कंपटीशन वर्ल्ड में गृहस्थ मजबूरी में या असमझ होते हुए ऐसे कार्य करता है जो नुकसानदायक और हिंसात्मक होते हैं.
जब सीमा पर शत्रु आक्रमण करता है तो देश की रक्षा के लिए सैनिक को हथियार उठाना पड़ता है. यह अनिवार्य हिंसा है. किसान को धान उगाने के लिए धरती खोदना पड़ता है. यह भी अनिवार्य हिंसा है. यह प्रवचन आचार्य महाश्रमण जी ने दी.

आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि न्यायाधीश को भी अपराधी को दंड देना पड़ता है. अगर दंड नहीं मिलेगा तो वह सुधरेगा कैसे? तो यह अनिवार्य हिंसा हो जाता है. हमें अपने दायित्व निभाने एवं सुधार के लिए यहा दंडदेना पड़ता है.

परंतु कुछ ऐसे मानव है जो बेमतलब बिना जरूरत के अपने आनंद के लिए हिंसा करते हैं. किसी भी प्राणी का प्राण लेने में जरा भी संकोच नहीं करते. यही अनर्थ दंड कहलाता है! खाद्य व पेय के बर्तनों को कभी खुला नहीं रखना चाहिए, क्योंकि कभी भी मक्खी या अन्य सूक्ष्म कीटाणु उस में आकर गिर जाते हैं.

अनावश्यक पानी बहाना, आग लगाना, फुल पत्ते तोड़ना,किसी की निंदा करना, किसी को हिंसा के लिए उकसाना, चित्त को कलुषित करने वाले साहित्य पढ़ना, T.V. देखना, गीत सुनना इत्यादि अनर्थ दंड कहलाते है. हमें ऐसी हिंसा से बचना चाहिए.

अनर्थदंड त्याग व्रत: हमें यही प्रेरणा देता है कि बेमतलब की हिंसा ना करें, त्याग करें. त्याग का जो सुख है वह अनंत है.