सुप्रिया पाण्डेय रायपुर. व्यक्ति के पास दृष्टि सम्यक होनी चाहिए. तभी वह जो चीज वास्तव में है, उसका आंकलन कर सकता है, उसे समझ सकता है. ये बाते तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य महाश्रमण की सुशिष्या साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा ने कहीं.
उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन एक जैसा है, किंतु लोग उसे अलग-अलग आंकते हैं कुछ मौज के लिए जीवन को मानते हैं, तो कुछ परोपकार के लिए और कुछ आगे की सोंचते हैं.
उन्होंने पूछा कि संसार में दुर्लभ क्या है? उन्होंने स्वयं ही लोगों की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा, अलग-अलग मनुष्यों की अलग-अलग धारणा होती है, कोई कहता है चिंतामणि रत्न दुर्लभ है, तो कोई कहता कामधेनु दुर्लभ है, कोई कहता है कल्पवृक्ष दुर्लभ है, तो कोई कहता है देव दर्शन दुर्लभ है, किंतु संसार में दुर्लभ चार चीजें हैं पहला मनुष्य जीवन प्राप्त करना. दूसरा मुमुक्षु (मुक्ति) का भाव होना, तीसरा महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त होना और चौथा इन्हें पाने के लिए पुरूषार्थ करना.
उन्होंने कहा कि आचार्य का आगमन भी दुर्लभ है. 50 साल पहले आचार्य तुलसी का आगमन राजनांदगांव की धरा में हुआ था और अब आचार्य महाश्रमण का आगमन होने जा रहा है. महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए और उनकी बातों को सुनकर उसे ग्रहण करना चाहिए तभी जीवन सफल हो सकता है.उन्होंनेे कहा, बहुत मुश्किल से मनुष्य जीवन मिलता है और यदि वह भारत में मिले तो क्या बात है. जिस क्षेत्र में साधु-साध्वियों का विचरण होता है, उस क्षेत्र में यदि मनुष्य है तो यह और भी अच्छा है.
साध्वी ने कहा कि ज्ञान दर्शन और चेतना मनुष्य जीवन में ही संभव है. मनुष्य जीवन मिला है, तो इसका सदुपयोग करना चाहिए. ज्ञान, दर्शन और चारित्र प्राप्त करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मुमुक्षु का भाव भी दुर्लभ है. कुछ ग्रहण करने का भाव, मोक्ष पाने का भाव जब उत्पन्न होता है, तब ही व्यक्ति के मन में मुमुक्षु बनने का भाव उत्पन्न होता है. इसी तरह महापुरुषों का सानिध्य मिलना भी दुर्लभ होता है. महापुरुषों के सानिध्य में एक दिन में ही रूपांतरण हो जाता है. हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हमें महापुरुषों का सानिध्य मिले और उनकी पुस्तकों या बातों का मनन-चिंतन कर हम उसे आचरण में लाएं और अपना जीवन सफल बनाएं.
किसी भी धर्म में अच्छी बातें मिली तो उसे अपनाएं. जैन धर्म में नौ तत्व बताए गए हैं. यदि हम इन तत्वों का पालन करें और जीवन में इसे आत्मसात करें तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा. कर्म यदि आत्मा से चिपका रहेगा तो काम, क्रोध, मोह, लोभ जैसे कषाय मन के द्वार में प्रवेश करते रहेंगे. कर्म और आत्मा को अलग-अलग करें तो हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी. हमारा पुरुषार्थ होना चाहिए कि हम मोक्ष को प्राप्त करें. हम मनुष्य जीवन में ही मोक्ष का अनुभव कर सकते हैं.