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अयोध्या. बुधवार सुबह राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास का निधन हो गया. अब उनका पार्थिव शरीर घर लाया गया है. जिसके बाद कल यानी गुरुवार सुबह उन्हें सरयू नदी में जल समाधि दी जाएगी. ब्रेन हेमरेज की शिकायत के बाद 3 फरवरी को लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था. जहां आज सुबह उन्होंने 80 साल की आयु में आखिर सांस ली.
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जल समाधि क्यों?
अमूमन देखा जाता है कि सनातन धर्म में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो प्राय: उसका दाह संस्कार किया जाता है. लेकिन मान्यताओं के अनुसार सनातन परंपरा में साधु-सन्यासियों को जल या भू-समाधि देने की परंपरा है. दाह संस्कार का नियम गृहस्थ लोगों के लिए है. जबकि साधु-सन्यासियों को जल या भू-समाधि दी जाती है. संतों को समाधि देने की परंपरा भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में प्राचीन काल से चली आ रही है. यह एक विशेष प्रकार की समाधि होती है, जिसमें संतों के पार्थिव शरीर को जल में प्रवाहित किया जाता है या फिर भू-समाधि दी जाती है. इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और व्यवहारिक कारण होते हैं.
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1992 में बनाए गए थे अस्थाई पुजारी
बता दें कि सत्येंद्र दास को 1 मार्च सन 1992 को राम मंदिर का अस्थायी पुजारी बनाया गया था. उस समय उनकी उम्र केवल 20 वर्ष थी. उन्होंने सांसारिक मोह माया का त्याग कर आजीवन रामलला की सेवा करने का संकल्प लिया था. आचार्य सत्येंद्र दास का जन्म 20 मई, 1945 को यूपी के संतकबीरनगर जिले में हुआ था. बचपन से ही सत्येंद्र दास को अध्यात्म और रामलला से लगाव था. उम्र बढ़ने के साथ-साथ रामलला के प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ती चली गई. सत्येंद्र दास अक्सर अपने पिता के साथ रामनगरी अयोध्या आते थे. इस दौरान उनकी मुलाकात अभिरामदास से हुई है. आगे चलकर अभिराम दास ने रामलला की लंबी लड़ाई लड़ी.
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