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Acharya Satyendra Das passed away. श्रीराम मंदिर अयोध्या धाम के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास (Acharya Satyendra Das) का बुधवार को निधन हो गया. पीजीआई लखनऊ में सुबह सात बजे 80 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली. बीते कुछ दिनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था. लिहाजा उन्हें अयोध्या में एक अस्पताल में भर्ती किया गया था. लेकिन हालत बिगड़ते देख उन्हें वहां से पीजीआई लखनऊ रेफर कर दिया गया था. यहां उनका इलाज चल रहा था. बुधवार सुबह उनका निधन हो गया.
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उनका जन्म 20 मई 1945 उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर में हुआ था. उन्होंने आजीवन रामलला की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया. पेशे से शिक्षक रहे सत्येन्द्र दास 1992 से रामलला की सेवा में चले गए. यानी 33 साल से वे लगातार रामलला की सेवा में रहे. इतना ही नहीं आचार्य जी का नाम राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल प्रमुख लोगों में से एक है. राम जन्मभूमि आंदोलन और 1992 में हुए बाबरी विध्वंस में इनकी सक्रीय भूमिका रही.
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‘दंश’ से लेकर ‘दर्शन’ तक का सफर
आचार्य जी के लिए सुखद पल ये रहा कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर श्री रामलला की पुनर्स्थापना तक का सफर तय किया. जिस राम मंदिर के लिए उन्होंने संघर्ष किया उस राम मंदिर में रामलला की प्रतिष्ठा के वे साक्षी रहे. उन्होंने टेंट में बैठ रामलला की भी सेवा की. इसके बाद करीब 4 साल तक अस्थाई राम मंदिर में भी प्रभु की सेवा में लगे रहे. फिर भव्य राम मंदिर बनने के साथ वे मुख्य पुजारी के रूप में राघवेंद्र सरकार की सेवा करते रहे.
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1992 में हुई थी राम मंदिर में नियुक्ति
1975 में संस्कृत विद्यालय से उन्होंने आचार्य की उपाधी प्राप्त की. इसके बाद 1976 में उन्हें अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक की नौकरी मिली. जहां कुछ सालों तक वे सेवा देते रहे. इसके बाद 1 मार्च 1992 में राम जन्मभूमि के तत्कालीन रिसीवर ने उन्हें राम मंदिर (टेंट) में पुजारी नियुक्त किया. उस समय उन्हें 100 रुपये वेतन मिलता था. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ये वेतन बढ़कर 38,500 रुपये हो गया था.
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जब रामलला को गोद में लेकर भागे थे
6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस का दिन कोई नहीं भूल सकता. इस दिन के आचार्य सत्येन्द्र दास (Acharya Satyendra Das) भी साक्षी रहे थे. उन्होंने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के साथ भी मोर्चा संभाला था. बाबरी विध्वंस के दौरान जब कारसेवक बाबरी ढांचे में प्रवेश करने लगे और विध्वंस होने लगा, इस बीच वे रामलला समेत चारों भाइयों को गोद में लेकर भागे थे. जिससे वे प्रभु रामलला की प्रतिमा को सुरक्षित रखने में सफल रहे थे.
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