रायपुर। दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता और अपनी खास मुस्कान के लिए अपने चाहने वालों के बीच मशहूर रहे मशहूर अभिनेता शशि कपूर का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को मुंबई में निधन हो गया। उनके निधन का समाचार मिलते ही उनके भतीजे ऋषि कपूर दिल्ली में अपनी फिल्म की शूटिंग छोड़ मुंबई रवाना हो गए हैं।
फिल्मी सफर
अपने पिता एवं भाइयो के नक़्शे कदम पर चलते हुए इन्होने भी फ़िल्मो में ही अपनी तक़दीर आजमाई. शशि कपूर ने ४० के दशक से ही फ़िल्मो में कम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मो में भूमिकाये निभाई. इन्होने मुंबई के डोन बोस्की सकूल से पदाई पूरी की. पिता पृथ्वीराज कपूर इनको छुटिट्यो के दोरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे. इसकी का नतीजा रहा की शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें आग 1948 और आवारा 1951 में भूमिकाएं दी. आवारा में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था. 50 के दशक मे पिता की सलाह पर वे गोद्फ्रे कैंडल के थियेटर ग्रुप ‘शेक्स्पियाराना’ में शामिल हो गए और उसके साथ दुनिया भर में यात्राये की. इसी दोरान गोद्फ्रे की बेटी और ब्रिटिश अभिनेत्री से उन्हें प्रेम हुआ और मात्र २० वर्ष की उम्र में 1950 में विवाह कर लिया. शशि कपूर ने गैर परम्परागत किस्म की भूमिकाओ के साथ सिनेमा के परदे पर आगाज किया था.
उन्होंने सांप्रदायिक दंगो पर आधारित धर्मपुत्र में काम किया था. उसके बाद चार दीवारी और प्रेमपत्र जैसी ऑफ बीट फ़िल्मो में नजर आये. वे हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने हाउसहोल्डर और शेक्सपियर वाला जैसी अंग्रेजी फ़िल्मो में मुख्या भूमिकाये निभाई. वर्ष 1965 उनके लिए एक महत्वपूर्ण साल था. इसी साल उनकी पहली जुबली फ़िल्म जब-जब फूल खिले रिलीज हुई और यश चोपड़ा ने उन्हें भारत की पहली बहुल अभिनेताओ वाली हिंदी फ़िल्म ‘वक्त’ के लिए कास्ट किया. बॉक्स ऑफिस पर लगातार दो बड़ी हिट फ़िल्मो के बाद व्यावहारिकता का तकाजा यह था की शशि कपूर परम्परागत भूमिकाये करे, लेकिन उनके अन्दर का अभिनेता इसके लिए तैयार नहीं था.
इसके बाद उन्होंने ए मत्तेर ऑफ इन्नासेंस और प्रीटी परली 67 जैसी फ़िल्मे की. वहीँ हसीना मान जाएगी, प्यार का मौसम ने उन्हें एक चोकलेटी हीरो के रूप में स्थापित किया. वर्ष 1972 की फ़िल्म सिथार्थ के साथ उन्होंने अन्तराष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी मौजूदगी कायक रखी. 70 के दशक में शशि कपूर सबसे व्यस्त अभिनेताओ में से एक थे. इसी दशक में उनकी चोर मचाए शोर, दीवार, कभी-कभी, दूसरा आदमी और सत्यम शिवम सुंदरम जैसी हिट फ़िल्मे रिलीज हुयी. वर्ष १९७१ में पिता पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद शशि कपूर ने जेनिफर के साथ मिलकर पिता के स्वप्न को जरी रखने के लिए मुंबई में पृथ्वी थिएटर का पुनरूथान किया। अमिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फ़िल्मो दीवार, कभी – कभी, त्रिशूल, सिलसिला, नमक हलाल, दो और दो पञ्च, शान ने भी उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलवाई. १९७७ में इन्होने अपनी होम प्रोडक्सन क. ‘फ़िल्म्वालाज’ लॉन्च की.