विक्रम मिश्र, लखनऊ. सूबे की योगी सरकार 2.0 में जीरो टॉलरेंस नीति का ब्यूरोक्रेट्स के द्वारा भ्रष्टाचार में सम्मिलित रहने वाले अधीनस्थ कर्मचारियों संरक्षण देने का खेल बेदस्तूर तरीके से जारी है. ये सिलसिला यहीं तक सीमित न रहकर लेखपाल और कानूनगो की झूठी जांच रिपोर्ट के आधार पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व के न्यायालय में दाखिल होने पर उजागर हुआ है.

वादी मुकदमा ने जब जांच रिपोर्ट का अवलोकन किया तो पूर्व सहायक कोषाधिकारी आत्माराम मिश्रा के अनुचित दबाव और प्रलोभन के चलते क्षेत्रीय लेखपाल रहे सुशील तिवारी और कानूनगो रहे रमाशंकर मिश्रा ने न्यायालय में झूठी रिपोर्ट देते हुए न्यायालय को गुमराह करने का आपराधिक कार्य किया. साथ ही सरकार में व्यवधान उत्पन्न कर दिया. जिस पर वादी मुकदमा ने आपत्ति जताते हुए न्यायालय को अवगत कराया. न्यायालय के पीठासीन अधिकारी एस सुधाकरन ने प्रकरण को संज्ञान में लेते हुए उपजिलाधिकारी सदर विपिन द्विवेदी को पत्रांक संख्या 328/11 को पत्र लिखते हुए 16 दिसंबर 2024 तक प्रकरण की रिपोर्ट तलब की.

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कागज का टुकड़ा बनकर रह गया आदेश

इसकी जांच रिपोर्ट 18 दिसंबर 2024 तक ना आने पर एडीएम एफआर ने फिर से एसडीएम सदर को स्मरण पत्र लिखते हुए पत्रांक संख्या 332/18 दिसंबर में स्पष्ट तौर पर लिखते हुए कहा कि उक्त प्रकरण में 21 दिसंबर से पहले जांच रिपोर्ट दाखिल करने और किसी भी प्रकार की शिथिलता ना बरतने के आदेश जारी किए गए. लेकिन एसडीएम सदर के लिए एडीएम एफआर की ओर से जारी आदेश पत्र महज कागज के टुकड़े बनकर रह गए और जांच रिपोर्ट निर्धारित तिथि तक नदारत रही.