दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High court) ने हरियाणा रोडवेज के एक कंडक्टर को राहत प्रदान की है. कोर्ट ने कंडक्टर के खिलाफ अनुशासनिक और अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही, कोर्ट ने हरियाणा रोडवेज को निर्देश दिया है कि वह कंडक्टर की बर्खास्ती के दौरान रोकी गई तनख्वाह और अन्य भत्तों का भुगतान तीन महीने के भीतर करे.

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हाईकोर्ट ने कहा है कि कंडक्टर पर आरोप है कि उसने विभिन्न यात्रियों से पैसे लिए, लेकिन टिकट नहीं दिए. यह एक पहलू है. दूसरी ओर, कंडक्टर ने 110 रुपये की धोखाधड़ी के मामले में दो दशकों तक हरियाणा से दिल्ली तक अपने खिलाफ चल रहे मुकदमों पर लाखों रुपये खर्च किए हैं. न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हालांकि इस मामले को दोबारा जांच के लिए भेजने का प्रावधान है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पास दशकों पुराने मामलों को समाप्त करने का विशेष अधिकार है. पीठ ने दो ऐसे मामलों का उल्लेख किया, जिनमें लंबी सुनवाई के बाद आरोपी को राहत दी गई थी. इसी सिद्धांत के तहत हरियाणा रोडवेज को निर्देश दिया गया है कि कंडक्टर को सभी लाभ दिए जाएं, जो उसे सेवा के दौरान मिलते हैं, जबकि कंडक्टर अब सेवानिवृत्त हो चुका है.

अनुशासनात्मक व अपीलीय प्राधिकरण ने रोके थे लाभ

हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुशासनात्मक और अपीलीय प्राधिकरण द्वारा कंडक्टर पर लगाए गए धोखाधड़ी और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार के आरोप सही पाए गए थे, जिसके चलते उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और सभी लाभों से वंचित कर दिया गया. यह ध्यान देने योग्य है कि जब ये मामले दर्ज हुए, तब कंडक्टर ने 25 वर्षों की सेवा पूरी कर ली थी, और उसके पूर्व के भत्तों को रद्द कर दिया गया था. उसे अपना पक्ष रखने में 20 साल का समय लगा, जो कि एक लंबा समय है, इसलिए उसे राहत मिलनी चाहिए.

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यात्रियों से रुपये लेने के बाद टिकट नहीं देने का आरोप

कंडक्टर की नियुक्ति हरियाणा रोडवेज में 1981 में हुई थी. घटना के समय वह दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों में चल रही एक बस में कंडक्टर के रूप में कार्यरत था. निरीक्षकों ने उसे पांच अलग-अलग मामलों में धोखाधड़ी का दोषी पाया. पहला आरोप चार जनवरी 2006 को लगा, जिसके बाद चार अन्य बार भी इसी तरह के आरोप सामने आए. कंडक्टर पर यात्रियों से कुल 110 रुपये वसूलने के बाद टिकट न देने का आरोप था.

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