नई दिल्ली. भारत की शान कहे जाने वाले कश्मीर में फिजा खराब करने में आतंकवादियों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. 90 के दशक में हजारों कश्मीरी पंडितों को अपना घर-कारोबार छोड़कर जम्मू – दिल्ली में शरणार्थी की तरह रहने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन अब फिजा बदल रही है. करीबन तीन दशक के बाद घर वापसी कर रहे कश्मीरी पंडित कहने से नहीं चूकते कि कश्मीर जैसी जगह दुनिया में नहीं.

हम बात कर रहे हैं श्रीनगर के व्यापारिक केंद्र ज़ैना कदाल में सूखे मेवों के जाने-माने व्यापारी रोशन लाल मावा की, जिन्हें आज भी अच्छी तरह से 13 अक्टूबर 1990 का वह मंजर याद है जब आतंकवादियों ने दुकान में कारोबार करते समय उनपर ताबड़-तोड़ चार गोलियां दागकर घायल कर दिया था. घटना के चार दिन बाद वे अपनी पत्नी, दो बेटों और एक बेटी के साथ बोरिया-बिस्तर बांधकर जम्मू स्थित कैंप में चला आए. बाद में अपने बेटे के कहने पर दिल्ली में जाकर बस गए और कारोबार करने लगे.

रोशन लाल कहते हैं कि दिल्ली में मैने मेहनत कर मसाला के कारोबार को खड़ा किया, लेकिन मैं अपने शहर को याद करता था. मेरे भगवान कश्मीर में ही रहते हैं, मैं कश्मीर का हूं, और यही मेरा घर है. घर वापसी के बाद रोशन लाल ने सूखे मेवों की दुकान फिर से खोली. इस दौरान आसपास के तमाम कश्मीरी मुसलमान व्यापारियों ने दस्तरबंदी (सफेद पगड़ी बांधने की रस्म) कर उनका सम्मान किया. स्वागत से अभिभूत रोशन लाल ने मीडिया से चर्चा में कहा कि यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सम्मान है. मैं पूरा देश घूमा है, लेकिन कश्मीर जैसे कोई जगह नहीं है. कश्मीरियत आज भी जिंदा है.

इस दौरान दूसरे कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के सवाल पर रोशन लाल ने कहा कि उन्हें अवसर की तलाश करनी चाहिए. 99 प्रतिशत कश्मीर अच्छे हैं, केवल एक प्रतिशत लोगों की सोच अलग हो सकती है. लेकिन मैं वापस आकर सुकून से हूं. इस दौरान जेएण्डके रिकॉसिलिएशन फ्रंट नामक संगठन के जरिए कश्मीर में विभिन्न समुदायों के बीच सेतु बनाने का काम कर रहे रोशन लाल के बेटे संदीप मावा ने बताया कि हम कश्मीर छोड़कर गए लोगों की वापसी के लिए प्रयास कर रहे हैं, इसके लिए मैने अपने पिता को राजी किया, बावजूद इसके की उन पर चार पर गोली मारा गया, तीन बार हमारा घर जलाया गया.