संदीप सिंह ठाकुर, लोरमी. मुंगेली जिले में स्वास्थ्य विभाग का बुरा हाल है. जिसके बदहाली की तस्वीर लोरमी के अचानकमार टाइगर रिजर्व के वनग्राम में देखने को मिली है. जहां सर्पदंश से एक पीड़ित बैगा आदिवासी महिला को परिजनों द्वारा मनियारी नदी निवासखार से बह्मनी खाट में उठाकर पार कराया गया. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.
बता दें कि, सरकार के द्वारा बैगा आदिवासियों के लिए दर्जनभर से अधिक योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन उनका जमीनी स्तर पर कितना विस्तार हुआ है इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है. एक बैगा महिला जो सर्पदंश से पीड़ित थी, जिसे खाट पर कंधे में रखकर परिजनों के द्वारा मनियारी नदी को पार कराया गया है. जिसका वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है.
वहीं भाजपा महामंत्री सुशील यादव ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा दिखावे की राजनीति कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विकास का ढिंढोरा पीट रहे हैं. हकीकत यह है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासियों का वन ग्राम में जीना दुभर है. वहां के लोग बीमार पड़ जाते हैं तो उनको लाने ले जाने के लिए कोई सुविधा नहीं है. निवासखार के बीमार पीड़ित महिला को खाट में सुलाकर लोगों के द्वारा कंधे से उठाकर अपनी जान जोखिम में डालकर तेज बहाव पानी से नदी पार करके उपचार के लिए लाया गया. कांग्रेस सरकार के विकास का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, वन ग्रामों में निवास करने वाले लोग सड़क बिजली पुल मोबाइल नेटवर्क सुविधा से आज भी वंचित हैं.
आगे उन्होंने कहा, लोरमी क्षेत्र की जनता 20 सालों से धर्मजीत सिंह को विधायक बना रहे हैं. लेकिन जंगल में निवास करने वाले बैगा आदिवासियों के लिए कुछ भी नहीं किया, यदि किया होता तो वन ग्रामों में पुलिया सड़क बन जाता. भूपेश बघेल की सरकार में कांग्रेसी नेता जंगल में जाकर नाच गम्मत पार्टी और भोजन कराते हैं. जंगल के पैसा से जंगल के लोगों को अंधकार में रखकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.
विस्थापन की आश में बैठे एटीआर के ग्रामीण
सरकार के द्वारा 2009-10 में पुनर्वास नीति के तहत एटीआर से 6 गांव के लोगों का विस्थापन किया गया है, जबकि आज भी 19 गांव का विस्थापन होना बाकी है. सरकारी नुमाइंदों के द्वारा विस्थापित होने की बात कहते हुए कई निर्माण कार्यों में रोक लगा गया है. जबकि एटीआर प्रबंधन जंगल में खुलेआम जमकर निर्माण कार्य करा रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि कब तक वनांचल में रहने वाले भोले-भाले बैगा आदिवासी समेत अन्य समाज के लोग इस तरह जीवन जीने को मजबूर रहेंगे.
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