बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर बवाल मचा हुआ है. इस बीच पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता और बीजेपी विधायक शुभेंदु अधिकारी का बयान सामने आया है. उन्होंने SIR का स्वागत करते हुए कहा है ये प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में भी होना चाहिए.

शुभेंदु अधिकारी ने रविवार (6 जुलाई) को कहा कि यह एक अच्छा कदम है और इससे पारदर्शिता आएगी. उन्होंने कहा कि देश में मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वाले अवैध प्रवासियों कीये प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में भी होना चाहिएपहचान की जानी चाहिए. बीजेपी नेता ने कहा कि जिन लोगों ने फर्जी आधार कार्ड और पहचान पत्र के जरिए नामांकन कराया है, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाने चाहिए.

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बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम हटाने की मांग

बीजेपी विधायक शुभेंदु अधिकारी ने पहले भी कई मौकों पर आरोप लगाया था कि बांग्लादेश से आए घुसपैठियों ने बंगाल की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है। उन्होंने ऐसे घुसपैठियों की पहचान करने तथा मतदाता सूची से उनके नाम हटाने की मांग की थी। बीजेपी नेता ने कहा कि देश की मतदाता सूची में केवल भारत के नागरिकों का नाम होना चाहिए। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि यदि मतदाता सूची में दर्ज घुसपैठियों को पहचानकर उनके नाम हटा दिये जाते हैं तो राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को नुकसान होगा।

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बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण

दरअसल बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभी चुनाव होने हैं. निर्वाचन आयोग ने बिहार में अयोग्य नामों को हटाने और सभी पात्र नागरिकों के नाम मतदाता सूची में शामिल करने एवं उन्हें मतदान में अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर प्रदान करने के लिए मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का निर्देश जारी किया है.

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विशेष गहन पुनरीक्षण का विरोध कर रहा विपक्ष

वहीं विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) के घटक दल पुरजोर तरीके से विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं. विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग पर गरीब और वंचित मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने का आरोप लगा रही है. निर्वाचन आयोग ने बिहार में यह प्रक्रिया शुरू कर दी है और इसे पांच अन्य राज्यों – असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी लागू किया जाना है, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं.

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शीर्ष अदालत में दायर हुई याचिका

गौरतलब है कि, बिहार में इस विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने की संभावना को लेकर सुप्रीम कोर्ट(Supeme Courte) में कई याचिकाएं दायर की गई हैं. सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल(Kapil Sibbal) ने इस मामले की तात्कालिक सुनवाई की मांग की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है. याचिकाकर्ता यह मांग कर रहे हैं कि संशोधन प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाई जाए.

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सुप्रीम कोर्ट से ही होने दें निर्णय

इस मसले पर 23 जनवरी 2018 से 1 दिसंबर 2018 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे ओपी रावत का कहना है कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है तो इस बारे में अभी मैं केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि इसका निर्णय सुप्रीम कोर्ट से ही होने दीजिए। रही बात अभी क्यों तो मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ने जो कदम उठाया है, वह संविधान के आर्टिकल-326 के तहत ही किया जा रहा है।

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2003 के बाद से वोटर लिस्ट का एसआईआर

इस मामले में चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि 2002-03 के बाद से अब तक बिहार की वोटर लिस्ट का एसआईआर क्यों नहीं हुआ, यह तो हम नहीं बता सकते। इसकी जानकारी तो रिटायर हो चुके पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ही दे सकते हैं, लेकिन आयोग ने अभी जो कदम उठाया है, वह संविधान और नियमों के मुताबिक ही उठाया है।

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