भारत-पाकिस्तान तनाव: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की हालिया बैठक में भारत ने पाकिस्तान की नीतियों को उजागर करते हुए तीखा प्रहार किया. इस बैठक में नागरिकों की सुरक्षा पर चर्चा की जा रही थी, जहां भारत ने स्पष्ट किया कि जो देश आतंकवादियों और आम नागरिकों के बीच भेद नहीं कर सकता, उसे नागरिकों की सुरक्षा पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरीश पुरी ने पाकिस्तान की निराधार और पाखंडी दावों का तथ्यात्मक जवाब दिया, साथ ही कई उदाहरण प्रस्तुत किए, जिससे पाकिस्तान की आतंकवाद के प्रति उसकी भूमिका स्पष्ट हो गई.

दिल्ली सरकार की स्कीमों के लिए होगा सर्वे, नाम, पता, आय के साथ धर्म-जाति समेत पूछे जाएंगे 37 सवाल

भारत ने दशकों तक पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का सामना किया है, जिसमें मुंबई का 26/11 हमला और अप्रैल 2025 में पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों का नरसंहार शामिल है. इन हमलों का मुख्य लक्ष्य हमेशा हमारे आम नागरिक रहे हैं. ऐसे देश के नागरिकों की सुरक्षा पर टिप्पणी करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक गंभीर चुनौती है.

पाकिस्तानी सेना पर गंभीर आरोप

हरीश पुरी ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी सेना ने इस महीने जानबूझकर भारतीय सीमा के गांवों पर गोलाबारी की, जिसके परिणामस्वरूप 20 से अधिक नागरिकों की मृत्यु हो गई और 80 से ज्यादा लोग घायल हुए. इस हमले में गुरुद्वारों, मंदिरों, चर्चों और अस्पतालों को भी निशाना बनाया गया. उन्होंने कहा कि ऐसी सेना और सरकार, जो धार्मिक स्थलों और नागरिकों को टारगेट बनाती है, उसके लिए उपदेश देने का यह मंच उपयुक्त नहीं है.

दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल एरिया की फैक्ट्री में लगी भीषण आग, जोरदार ब्लास्ट से ढह गई इमारत, मचा हड़कंप

ऑपरेशन सिंदूर का भी जिक्र

भारत ने यह जानकारी दी है कि पाकिस्तान के सरकारी, पुलिस और सैन्य अधिकारी हाल ही में मारे गए आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. यह स्थिति यह दर्शाती है कि पाकिस्तान आतंकवाद और आम नागरिकों के बीच कोई अंतर नहीं करता. हरीश पुरी ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए आम नागरिकों को ढाल के रूप में इस्तेमाल करता है.

राहुल गांधी को झारखंड की कोर्ट से झटका, अदालत ने जारी किया गैरजमानती वारंट; जानें क्या है मामला

भारत का स्पष्ट संदेश

भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट संदेश दिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी राज्य नीति के रूप में अपनाएगा, तब तक वह किसी भी नैतिक चर्चा में शामिल होने का हकदार नहीं है.