रायपुर । आगामी माह में देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और चुनावी माहौल के बीच ईवीएम का मसला हर बार गर्माता है. बीजेपी सरकार पर ईवीएम मशीन पर छेड़-छाड़ करने के आरोप लगते रहे हैं. दिल्ली चुनाव में आप पार्टी और कांग्रेस ने भी बीजेपी पर ईवीएम हैक करने का आरोप लगाया था इसलिए चुनाव आयोग ने मतदाताओं का चुनाव प्रक्रिया पर भरोसा बनाए रखने अब चुनावों में वीवीपैट मशीन लेकर आ रही है जिससे मतदाता अपने वोट को लेकर निश्चिंत रहे.

क्या है वीवीपीएटी-  वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) एक तरह की मशीन होती है. इसे ईवीएम के साथ जोड़ा जाता है. इसका लाभ यह होता है कि जब कोई भी व्यक्ति ईवीएम का इस्तेमाल करते अपना वोट देता है तो इस मशीन में वह उस प्रत्याशी का नाम भी देख सकता है, जिसे उसने वोट दिया है. वीवीपीएटी मशीन के तहत वोटर विजुअली सात सेकंड तक यह देख सकेगा कि उसने जो वोट किया है क्या वह मत उसके इच्छानुसार उसके प्रत्याशी को मिला है या नहीं. इस मशीन के जरिए मतदाता को प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह और नाम उसकी ओर से चुनी गई भाषा में दिखाई देगा.
 

इस चुनाव में वीवीपैट का प्रयोग सबसे पहले

सबसे पहले इसका इस्तेमाल नागालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट मशीन बनाने और इसके लिए पैसे मुहैया कराने के आदेश केंद्र सरकार को दिए. चुनाव आयोग ने जून 2014 में तय किया किया अागामी चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा. आयोग ने इसके लिए केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपए की मांग की. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने यह मशीन 2013 में डिज़ायन की. साल 2016 में 33,500 वीवीरपैट मशीन बनाईं. इसका इस्तेमाल गोवा के चुनाव में 2017 में भी किया गया.

वीवीपैट की खासियत

यदि कोई शख्स चुनाव के दौरान वीवीपैट की पर्ची में अपने द्वारा किसी अलग उम्मीदवार का नाम आने की बात करता है, तो चुनाव अधिकारी उस मतादाता से पहले एक हलफनामा भरवाते हैं. इसके तहत मतदाता को बताया जाता है कि सूचना के गलत होने उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का प्रावधान है. इसके बाद चुनाव अधिकारी सभी पोलिंग एजेंटों के सामने एक रेंडम टेस्ट वोट डालते हैं. जिसे बाद में मतगणना के वक्त घटा दिया जाएगा. इस वोट से वोटर के दावे की सच्चाई का पता लगाया जा सकेगा.

वीवीपैट में उम्दा क्वालिटी का एक प्रिंटर इस्तेमाल होता है. जिसकी वजह से उससे छपी पर्चियों पर से कई सालों तक स्याही नहीं मिटती है. प्रिंटर में एक खास सेंसर भी लगा रहता है जो खराब क्वालिटी की पर्ची आने पर प्रिंटिंग अपने आप बंद कर देता है.

थर्ड जनरेशन वीवीपैट

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार थर्ड जनरेशन ईवीएम मशीनों का उपयोग किया गया था. इसपर आयोग का कहना था कि इसमें लगी चिप को सिर्फ एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है. चिप के सॉफ्टवेयर कोड को ना तो पढ़ा जा सकता और ना ही इसे दोबारा लिखा जा सकता है. इसे किसी इंटरनेट या सॉफटवेयर के जरिए भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता. आयोग ने दावा किया था कि इनके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ होने पर यह अपने आप बंद हो जाती हैं.