सुप्रिया पांडेय, रायपुर। कोरोना काल में प्रदेश की विभिन्न कंपनियों ने सीएसआर का पैसा पीएम केयर्स फंड में जमा किया है, इसका असर यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल गरीब राज्य में सामाजिक संस्थानों को कंपनियों से आर्थिक मदद नहीं मिल रही है, जिससे उनका कामकाज ठप हो गया है. सीएसआर फंड पर निर्भर छत्तीसगढ़ में अनेकों संस्थान समाज में आर्थिक व मानसिक रूप से कमजोर व मजबूर लोगों की मदद करते हैं, लेकिन फंड नहीं होने की वजह से इनका भी बहुत बुरा हाल है.
सीएसआर फंड नहीं मिलने से हेल्पएज रायपुर बुरे दौर से गुजर रहा है. हेल्पेज बीते तीन दशकों से मुफ्त राशन, मुफ्त दवाइयां और परामर्श प्रदान करके के अलावा अपने कल्याणकारी परियोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्धों की जीवन की गुणवत्ता में सुधार का काम कर रहा है, इसके साथ ही वृद्ध व्यक्तियों की राष्ट्रीय नीति के कार्यान्वयन के लिए जोर भी दे रहा है. गरीबी, अलगाव और उपेक्षा के खिलाफ हेल्पएज लगातार लड़ाई में है, लेकिन सीएसआर फंड नहीं मिलने से गतिविधियां रूक सी गई है.
फंड नहीं मिलने से बहुत कठिनाई
हेल्पएज रायपुर के शुभांकर बिश्वास ने कहा कि पूरे भारतवर्ष में करीब सात लाख से ज्यादा एनजीओ है, यदि सीएसआर नहीं आएंगे तो हम कैसे जिएंगे. हम काम करना चाहते हैं और काम करने के लिए हमें सीएसआर फंड की जरूरत है. सीएसआर का फंड पूरा पीएम केयर्स फंड में डाइवर्ट हो चुका है. कठिनाइयां तो बहुत होगी, क्योंकि कितने दिन हम इस तरह के पेंडेमिक सिचुएशन में रहेंगे, यह कोई नहीं जानता. छत्तीसगढ़ के जितने भी सीएसआर वाले हैं सभी को आने वाले दिनों में और भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.
सीएसआर फंड न मिलने से कंपनियां धीरे-धीरे यह बोलना शुरू कर रही है कि हमारे पास कुछ नहीं है. सीएसआर के एक्ट में अमेंडमेंट किया गया है, और सीएसआर का पीएम केयर्स फंड में ट्रांसफर होने के कारण डीएमएफ का रास्ता भी बंद हो गया. अब डीएमएफ को सीधे खर्च करने के लिए राज्य सरकार को एक आदेश दिया गया कि आप इस पर पूरा पैसा खर्च कर सकते हैं. अब राज्य सरकार डीएमएस के पैसे को अपने हिसाब से खर्च करेगी.
लोकल एनजीओ को नहीं आता ज्यादा पैसा
एनजीओ संचालक संजय शर्मा ने कहा कि सीएसआर के जरिए अधिकांश बड़ी-बड़ी कंपनियों का फंड बड़े अमाउंट में आता है. छत्तीसगढ़ के जो ग्रास रूट लेवल के अंदर से उनका टर्नओवर है, सालाना वह कम होता है, और बड़ी सीएसआर कंपनी आती है वह ज्यादातर बड़े-बड़े अमाउंट वाली होती है, जिसमें लोकल कोई एनजीओ नहीं आता है. यही वजह है कि पहले भी सीएसआर का फंड नहीं मिल पा रहा था और अब पीएम केयर्स फंड में जिसने सीएसआर का ट्रांसफर हुआ. पीएम केयर्स में जो पैसा गया है उसमें एनजीओ को मिलेगा या नहीं इस पर कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं है.
बता दें कि सीएसआर का उपयोग गरीबी, भूखमरी को कम करना, कौशल विकास और शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना है. इसका उपयोग सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार करना भी है.. भारत में यह नियम 2014 से लागू है. जिन कंपनियों को 5 करोड़ का सालाना लाभ हो या 500 करोड़ रुपये के कुल लाभ या 1,000 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनियों को सीएसआर फंड में दान करना होता है. ये कंपनियां पिछले 3 वर्षों के अपने औसत शुद्ध लाभ का 2 फीसदी सीएसआर में दान करना होता है.
जानकारी के मुताबिक, देशभर के कुल 38 सार्वजनिक उपक्रमों ने पीएम केयर्स फंड में 2,105 करोड़ रुपये से ज्यादा की सीएसआर राशि दान की है. नियम के अनुसार सीएसआर की राशि उन कार्यों में खर्च की जाती है, जिससे लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार हो सके. पीएम केयर्स फंड को सरकार ने आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है.
सीएसआर की अवधारणा अधूरी
इंडिया सीएसआर के संस्थापक रूसेन कुमार ने कहा कि धनराशि सीधे किसी भी सरकारी संस्था को एकमुश्त बड़ी राशि दे देने से सीएसआर कानून की अवधारणा है वह पूरी नहीं हो जाती है. सीएसआर फंड का सदुपयोग तभी है जब वह सीधे एनजीओ के माध्यम से योजनाबद्ध तरीके से पीड़ित लोगों तक, वंचित समाज के लोगों तक तथा उनके समाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाने वाले कार्यक्रमों में उपयोग होता हो सीएसआर फंड के उद्देश्य को समझने की आवश्यकता है.
सीएसआर परियोजनाएं केवल पैसे खर्च कर देने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य समाजिक हालात को पहले से बेहतर बनाने के बारें में है सीएसआर फंड की स्वतंत्रता इसलिए आवश्यक है सीएसआर फंड का उपयोग एक एक्टिविटी के बजाए, सामाजिक एवं आर्थिक परेशानियों को हल करने के लिए एक क्रिएटीविटी भरें कार्य में लगाना चाहिए. सामाजिक परिवर्तन लाने में भारत में एनजीओ की बड़ी भूमिका है, जिसे वे बखूबी निभा रहे है.
कार्पोरेट सीएसआर फंड यह केवल धनराशि से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक कानून हा हमें इसे ध्यान रखना चाहिए साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह मानविय विकास करने के लिए योजनाबद्ध पहल करने की एक विशिष्ट अवधारणा है. हमें ध्यान रखना है कि सीएसआर फंड जनता का पैसा है और इसका अधिकतम उपयोग गरीबी, उन्मूलन, समाजिक, आर्थिक असमानता को दूर करके ऐसे कार्यक्रमों में लगाना चाहिए.
सीएम बघेल ने लिखा था पीएम मोदी को पत्र
बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सीएसआर फंड को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखा था और कहा था कि सीएसआर की राशि कोराना संकट की इस घड़ी में राज्य को दी जाए. मुख्यमंत्री ने पत्र के माध्यम से यह भी कहा था कि सीएसआर मद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से प्रभावित व्यक्तियों को राहत देना है. जिससे शासन यह तय करेगा कि सीएसआर मद की राशि उन्ही जिलों में व्यय किया जाए जो जिलें औधोगिक परियोजनाओं व खनन से प्रभावित है. केन्द्र सरकार के इस निर्णय से खनन इकाइयों के आसपास के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ेगा.
बता दें कि सीएसआर मद से छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष खनन परियोजनाओं व उद्योगो के आसपास के क्षेत्रों में मुलभूत सुविधाओं का विकास किया जाता है. कोरोना के इस दौर में जहां भाजपा सांसदों ने सांसद निधि की राशि पीएम केयर्स फंड में जमा करवाया है, तो वही एनएमडीसी, सेल, बीएसपी सहित अनेक उद्योगों ने सीएसआर फंड की राशि पीएम केयर्स फंड में जमा करा दी है.