रायपुर/बिलासपुर. छत्तीसगढ़ में तकनीकी के अनुसार वृक्षारोपण नहीं हो पाने और करोडों पौधों लगाने के बावजूद 3700 वर्ग कि.मी. जंगल कम हो जाने के मामले में दायर की गई जनहित याचिका में आज शासन द्वारा जवाब प्रस्तुत कर बताया कि जनहित याचिका दायर करने उपरांत अब विभाग निर्धारित तकनीकी का उपयोग कर के वृक्षारोपण कर रहा है। याचिका में मांग की गई थी कि उचित निर्देंश जारी किये जावें कि वृक्षारोपण पूर्णः वैज्ञानिक तरीके से किया जावे तथा पौधों की उचित समय तक रख-रखाव एवं मानिटरिंग की जावें।

याचिका में बताया गया था कि हरिहर 2017 के तहत 8 करोड 2 लाख पौधे लगाये है, हरिहर 2016 में 7 करोड़ 60 लाख पौधे लगाये गये, हरिहर 2015 में 10 करोड़ पौधे लगाये गये। छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात् लगातार वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3 प्रतिशत जंगल अर्थात् 3700 वर्ग कि.मी. जंगल कम हो गया है।

याचिका का निराकरण करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी तथा न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल ने आदेशित किया कि वन विभाग द्वारा अब की जा रही कार्यवाही संतोषजनक है और आगे भी वन विभाग तकनीकी के अनुसार वृक्षारोपण करेंगे।

गौरतलब है वर्ष 1986 में मध्यप्रदेश के समय से जारी प्लानटेशन टेकनीक के अनुसार वृक्षारोपण हेतु जगह का चयन वृक्षारोपण करने के एक वर्ष पूर्व ही कर दिया जाना चाहिये तथा वैज्ञानिकों के अनुसार गर्मियों में ही वृक्षारोपण हेतु गड्ढें खुद जाने चाहिये तथा वृक्षों की देखरेख 5 वर्षों तक होनी चाहिये। वन विभाग ने 2013 में निर्देश दिये थे कि हर हालत में 20 जुलाई तक वृक्षारोपण कार्य पूर्ण हो जाना चाहिये।

साथ ही बरसात या विषम परिस्थितियों हो तो 31 जुलाई तक वृक्षारोपण किया जा सकता है परंतु इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा था इस कारण से रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने जनहित याचिका दायर की थी। भारत के नियंत्रक एवं महालेखानिरीक्षक ने भी आपत्ति की थी कि वृक्षारोपण बिना योजना के कर दिया जाता है, स्थान का ध्यान यथोचित नहीं होता और वृक्षारोपण पश्चात् देख-रेख के लिये फण्ड भी नहीं दिये जाते।