Nepal PM resignation: नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन के बाद भड़की हिंसा और विरोध प्रदर्शनों ने अब एक बड़ा राजनीतिक मोड़ ले लिया है। नेपाल में बवाल के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होेंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दिया है. नेपाल में सड़क से संसद तक संग्राम जारी है. Gen-Z के प्रदर्शन में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 250 से अधिक लोग घायल हैं.
इस बीच, नेशनल इंडिपेंडेंट पार्टी (RSP-R) की सांसद सुमना श्रेष्ठ ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की भी मांग कर दी है। एक ‘यूथ आइकन’ के रूप में पहचानी जाने वाली सुमना श्रेष्ठ का यह कदम न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार के फैसले के खिलाफ युवाओं का गुस्सा अब संसद के गलियारों तक पहुंच गया है।
हिंसा की जांच के लिए कमेटी गठित, 15 दिन में सौंपनी होगी रिपोर्ट
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़की हिंसा की जांच के लिए कमेटी गठित की गई है. कैबिनेट की बैठक में इसको लेकर फैसला किया गया. कमेटी को 15 दिन में रिपोर्ट सौंपनी होगी.
सांसद का तीखा हमला: ‘असुरक्षा’ और ‘अहंकार’ का आरोप
सांसद सुमना श्रेष्ठ ने अपने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर प्रधानमंत्री ओली पर तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री ओली का इस्तीफा देना बेहद जरूरी हो गया है। सोशल मीडिया बैन का उनका फैसला उनकी असुरक्षा और अहंकार को दर्शाता है। यह युवाओं के भविष्य और देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर रहा है।” सुमना ने यह भी कहा कि इस तरह के फैसलों से देश में हिंसा और अस्थिरता का माहौल बन रहा है, जिससे आम जनता और खास तौर पर युवा वर्ग परेशान है। इसके अलावा नेपाल में बवाल के बाद सभी परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया है. ये परीक्षाएं 9, 10 और 11 सितंबर को होने वाली थी।
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सोशल मीडिया बैन: एक गलत फैसला?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार ने इन कंपनियों के नेपाल में रजिस्ट्रेशन न होने का हवाला दिया था। हालांकि, विरोध कर रहे युवाओं का कहना है कि यह उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर सीधा हमला है। इस बैन के बाद काठमांडू की सड़कों पर हजारों युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद हुई हिंसा में 16 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हुए। सुमना श्रेष्ठ ने अपने पोस्ट में इन्हीं घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री का यह कदम देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
युवाओं की आवाज बनीं सुमना श्रेष्ठ
सांसद सुमना श्रेष्ठ नेपाल में एक लोकप्रिय चेहरा हैं, खासकर युवा वर्ग के बीच। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में की थी और वे भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दों पर खुलकर बोलती हैं। सोशल मीडिया पर उनके फॉलोअर्स की संख्या लाखों में है। इसलिए, जब उन्होंने प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की, तो यह सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि यह लाखों युवाओं के गुस्से की गूंज थी। उनका यह कदम यह भी दिखाता है कि युवा पीढ़ी की राजनीति अब पारंपरिक राजनीतिक रेखाओं से परे है और वे सीधे मुद्दों पर बात करना चाहते हैं।
पीएम ओली पर बढ़ता दबाव
सुमना श्रेष्ठ की इस्तीफे की मांग से प्रधानमंत्री ओली पर दबाव बढ़ गया है। एक तरफ सड़कों पर प्रदर्शन जारी हैं, तो दूसरी तरफ संसद के भीतर से भी उनके खिलाफ आवाज उठने लगी है। ओली ने हालांकि अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि कंपनियों को देश के नियमों का पालन करना होगा। लेकिन, हिंसा और मौतों के बाद उनकी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सुमना श्रेष्ठ की मांग को अन्य विपक्षी दल भी समर्थन देंगे और क्या यह मुद्दा संसद के भीतर एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर पाएगा। फिलहाल, नेपाल की राजनीति में सोशल मीडिया पर लगा बैन एक बड़ा मुद्दा बन गया है, जिसने एक सांसद को सीधे प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग करने पर मजबूर कर दिया है। यह घटनाक्रम न सिर्फ नेपाल की राजनीति, बल्कि दुनिया भर में सोशल मीडिया और सत्ता के बीच के नाजुक रिश्ते को भी दर्शाता है।
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